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इन्डो-वैक्ट्रियन और इन्डा पार्थियन राज्य ।
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वहां जाकर बौद्ध धर्मका प्रचार किया था। स्ट्रेबोने लिखा है कि मेनेन्डरने पटल ( सिन्ध ) सुराष्ट्र और सगर डिस ( सागर - दीप कच्छ ) तक अधिकार कर लिया था। उसके शिक्के भड़ौचतक प्रच लित थे और उसकी सेना राजपूताना तक पहुंची थी । मेनेन्डर बीर होनेके साथ ही शास्त्रज्ञ भी था । प्लूटार्कने उसे एक अन्यन्न न्यायवान राजा लिखा है । वह इतना लोकप्रिय था कि इसकी मृत्यु के पश्चात लोगोंने उसका भरमावशेष आपस में बांटकर उसपर स्तुप बनाए थे। मेनेन्डरका अधिकार मधुरा, माध्यमिका : चित्तौरके निकट) और साकेत दक्षिणी अवध ) तक होगया था । किन्तु गंगा के आसपास वाले प्रदेशोंमें उसका राज्य अधिक दिनोंतक नहीं. रहा था । पातन्जली के महाभाव्यमें यवनों द्वारा साकेत और मध्यमिकाके घेरेका उल्लेख है ।
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संभवतः यह उल्लेख मैंनेन्डर के आक्रमणको लक्ष्य करके लिखा गया है क्योंकि यह चढ़ाई पातंजलिके समय में हुई थी ।' जष्टिन मेनेन्डरको भारतका राजा लिखता है। बौद्धग्रन्थ 'मिलिन्द पाह' से पता चलता है कि भिक्षु नागसेन के उपदेशसे मेनेन्डरने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया था किन्तु बौद्ध होने के पहले उसका जैन होना बहुत कुछ संभव है । उसने जिन दार्शनिक सिद्धांतोंपर नागसेन के. साथ बहस की थी. वह ठीक जैनोंके अनुसार हैं ! स्वयं 'मिलिन्द पण्ह' में कथन है कि पांचसौ यूनानियोंने राजा मेनेन्डरसे भगवान महावीरके धर्म द्वारा मनस्तुष्टि करनेका आग्रह किया था और मेनेन्डर ने
१ - भाप्रारा० भा० २ पृ० १४२ - १४३. २ - विशेष के लिये देखो 'वीर' वर्ष २ पृ० ४४६ - ४४९.
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