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________________ उत्तरी भारतके अन्य राजा व जैनधर्म। [१६९ अपनाया था, उसने एक आज्ञापत्र निकालकर महीनेके कई दिनोंमें हिंसाका निषेध कर दिया था। दादरावको जैनधर्मभुक्त बनानेवाले यशोभद्रसूरिके उत्तराधिकारी सालिसूरि थे और वह चौहानवंशके भूषण कहे गये हैं। इससे उनका चौहान राजकुमार होना प्रगट है। इस उल्लेखसे स्पष्ट है कि जैनधर्मने चौहान राजकुलमें कितना गहन और घनिष्ट सम्बन्ध पालिया था। उपरोक्त अल्हणदेवके तीन पुत्र (१) केल्हाण, (२) गजसिंह और (३) कीर्तिपाल थे । कीर्तिपालका पुत्र अभयपाल था। इसने और इसके भाई लखनपालने अपनी माता महिबलदेवीके साथ वि० सं० १२३३ में जैन मंदिरको इसलिए दान दिया था कि उससे शान्तिनाथ तीर्थकरका उत्सव मनाया जाया करे। राजपूतानामें राठौर क्षत्रियोंका राज्य पहलेसे होनेके चिह्न मिलते हैं । हस्तिकुंडी (हथूडी) से एक लेख हस्तिकुंडीके राठौड़ोंमें सन् ९९७ ई०का मिला है, उससे वहांपर जैनधर्म। राठौड़ोंका राज्य होना प्रमाणित है । हy डीके राठौरोंकी वंशावली हरिवर्मा नामक राजासे प्रारम्भ की गई है । इसका पुत्र विदग्धराज था, जो इसके बाद सन् ९१६ ई० में राज्याधिकारी हुआ था। विदग्धराज जैन धर्मानुयायी था। उसने ऋषभदेवजीका एक भव्य मंदिर बनवाया था और बलभद्र मुनिकी कृपासे उसके लिए भूमिदान किया था । विदग्धका पुत्र मम्मट था। उसने उक्त दानको बढ़ा दिया था। वह १-सडिजै०, पृ० ३५ व ३६ । २-डिजैबा०, भा० १ पृ० १२। .३-भाप्रारा०, भा० ३ पृ० ९१-९२। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035244
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1934
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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