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अन्य राजा ओर जैन संघ ।
जिस समय इस भरतक्षेत्र में कर्मभूमिका प्रादुर्भाव हुआ था,
तब यहांके मनुष्योंमें किसी भी प्रकारकी उपजातियोंकी कोई जाति अथवा वर्णव्यवस्था नहीं थः । उत्पत्ति । जनता कर्मभूमिके कर्तव्योंसे आरिचित थी
और वह भयभीत हुई तत्कालीन राजा ऋष. भदेवके सन्निकट सभ्यताकी प्राथमिक शिक्षा ग्रहण कर रही थी इसी समय ऋषभदेवने जनताकी समुचित रक्षा और उन्नतिके भावसे वर्ण अथवा जाति व्यवस्थाको जन्म दिया था। उन्होंने उन पुरुषोंको 'क्षत्रिय' संज्ञासे विभूषित किया, जिनको जनताकी रक्षाके योग्य समझकर यह भार सौंपा गया। इसी प्रकार मनुष्योंकी योग्यताके अनुसार वैश्य और शूद्र निपत हुए । तथापि भरत महाराजने ऋषभदेवजी द्वारा धर्मकी प्रवर्तना होनेपर उपरोक्त तीनों वर्णो मेंके व्रती पुरुषोंमेंसे ब्राह्मण वर्णकी स्थापना की थी। जैसे कि प्रथम भागमें लिखा जाचुका है ।' मूलमें यहांपर इस प्रकार चातुर्वर्णमय व्यवस्था थी । इन चारवोंके साथ विविध कुलोंकी स्थापना भी होगई थी। यह अधिकांश कुटुम्बोंके महापुरुषों अथव। ग्रामोंकी अपेक्षा हुई थी; जैसे राजा अर्ककीर्तिकी अपेक्षा अर्क अथवा सूर्यवंश और यदुकी अपेक्षा यदुवंश विख्यात हुए थे । भगवान महावीरजीके समय तक यह. चातुर्वर्ण व्यवस्था समुचित रीतिसे चल रही थी; किंतु उसके उपरांत ये वर्ण अनेक उपजातियोंमें विभक्त होचले थे। जैनाचार्य इंद्रनंदिजी पंचमकालके प्रारंभमें ग्रामादि अपेक्षा इन उपजातियोंका जन्म हुआ लिखते हैं । इतिहासकी स्वाधीन साक्षीसे भी प्रमाणित है ६-सज इ० भा० १ पृ० ४२ व आदि पुराण, पर्व ३९। २-नीतिसार
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