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२०] संक्षिप्त जैन इतिहास । तब उन्होंने जैनधर्म प्रभावनाके लिये अनेक कार्य किये थे। जक जब भगवान महावीरका समोशरण राजगृह के निकट विपुलाचल पर्वत पर पहुंचा था, तब तब उन्होंने राजदुन्दुभि बनवाकर सपरिवार और प्रजा सहित भगवानकी वन्दना की थी। उन्होंने कई एक जैन मंदिर बनवाये थे। सम्मेदशिखर पर जो जन तीर्थंकरों के समाधि मंदिर और उनमें चरणचिह्न विरानमान हैं, उनको सबसे पहिले फिरसे सम्र ट् श्रेणिकने ही बनवाया था । इनके सिवायः जैनधर्मके लिये उन्हों। और क्या २ कार्य किये, इसको जाननेके लिये हमरे पास पर्याप्त साधन नहीं है । तो भी जैन शास्त्रोंके मध्ययनसे उनके विशेष कार्यों का पता खुब चलता है और यह स्पष्ट होनाता है कि इस राजवंशमें जैनधर्मकी गति विशेष थी। श्रेणिके पुत्रों से कई भगवान महावीरके निकट जैन मुनि होगये थे। स्म्र ट णक क्षायि सम्यग्दृष्टी थे परन्तु वह व्रतों का अभ्यास नहीं कर सके थे । इपया भी वह अपने धर्मप्रेमके अटूट पुण्य प्रतापसे आगामी पद्मनाम नामक प्रथम तीर्थकर होंगे। ऊपर कहा जाचुका है कि सम्राट् श्रेणिकके ज्येष्ठ पुत्र मभ
यकुमार थे और वही युवराज पदपर रहकर युवराम अभयकुमार।
बहुत दिनोंतक राज्यशासनमें अपने पिताका हाथ बटाते रहे थे । फलतः मगधका राज्य भी बहार दूरतक फैल गया थे। अपने पिताके समान अभयकुमार भी एक समय बौद्ध थे; किंतु उपगन्त वह भी जैनधर्मके परमभक्त हुये थे। बौडग्रन्यसे
१-स्व० बिन्सेन्ट स्मिथ साहबने उन्हें एक जैन राजा प्रगट किया है। ऑहिइ. १० ४५। २-ऐशियाटिक सोसाइटी बर्नल, जनवरी १८२४ व
भ. म. पृ. १४७। ३-भाइ, पृ० ५४ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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