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________________ शिशुनाग वंश । [ १९ जिसे खरोष्टी लिपि कहते हैं, प्रचलित हो गई और यहां के शिल्प पर भी फारमकी कलाका प्रभाव पड़ा था । सम्र श्रेणिक के राज्य घतंत्र में जैनों का कहना है कि 'उनके राज्य करते समय न तो राज्यमें किसी प्रकारकी अनीति थी और न किसी प्रकारका भय ही था, किन्तु प्रजा अच्छी तरह सुखानुभव करती थी । ' जैनघमंके इतिहास में श्रेणिक विम्वपारको प्रमुखस्थान प्राप्त है । श्रेणिक विध्वसार भगवान महावीर के समोशरण (भागृह) में वह जैन थे और उनका मुख्य श्रोता थे । जैनों की मान्यता है कि यदि धार्मिक जीवन । श्रेणिक महाराज भगवान महावीरजीसे साठ हजार प्रश्न नहीं करते, तो आज जैनधर्मका नाम भी सुनाई नहीं पड़ता ! किंतु अभाग्यवश इन इतने प्रश्नों में से आज हमें अनि अल्प संख्यक प्रश्नों का उत्तर मिलता है । प्रायः जितने भी पुराण ग्रन्थ मिलते हैं, वह सब भगवान महावीरके ममोशरण में श्रेणिक महाराज द्वारा किये गये प्रश्न के उत्तर में प्रतिपादित हुये मिलने हैं। जैनाचार्यों की इम परिपाटीसे महाराज श्रेणिककी धर्म जो प्रधानता है, वह स्पष्ट होजाती है। श्रेणिक महारानको बौद्ध अपने धर्मका अनुयायी बतलाते हैं; किंतु बौद्धों का यह दावा उनके प्रारम्भिक जीवन के सम्बन्धमें ठोक है । अवशेष जीवनमें वह पके I जैनधर्मानुयायी थे । यही कारण है कि बौद्ध ग्रंथों में उनके अंतिम जीवन के विषय में घृणित और कटुक वर्णन मिलता है, जैसे कि हम अगाड़ी देखेंगे । जब श्रेणिक महारानको जैनधर्ममें दृढ़ अज्ञान होगया था, १- माइ० ५० ५४ । २-म० २० १० १३८-१४८ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035243
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1932
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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