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________________ २७६] संक्षिप्त जैन इतिहास । नहीं लेते हैं। इसी तरह जैन शास्त्रों में मोक्ष ही मनुष्य का अंतिम ध्येय बताया गया है; पर अशोक उसका भी उल्लेख नहीं करते हैं। किन्तु उनका मोक्षके विषयमें कुछ भी न कहना जन दृष्टिसे ठीक है; क्योंकि वह जानते थे कि इस जमाने में कोई भी यहांसे उत्त परम पदको नहीं पासक्ता है और वह यहांके लोगोंके लिये धर्माराधन करनेका उपदेश देरहे हैं। वह कैसे उन बातों का उपदेश दें अथवा उल्लेख करें जिसको यहांके मनुष्य इस कालमें पाही नहीं सक्ते हैं। जैन शास्त्र स्पष्ट कहते हैं कि पंचमकालमें (वर्तमान समयमें) कोई भी मनुष्य-च हे वह श्रावक हो अथवा मुनि मोक्ष लाभ नहीं कर सका। वह स्वर्गौके सुखोंको पासक्ता है। फिर एक यह बात भी विचारणीय है कि अशोक केवल धर्माराधना करनेपर जोर देरहा है और यह कार्य शुभरूप तथापि पुण्य प्रदायक है । जैन शास्त्रानुपार इस शुभ कार्यका फल स्वर्ग सुख है। इसी कारण अशोकने लोगों को स्वर्ग-प्राप्ति करनेकी ओर आकृष्ट किया है । उसके बताये हुए धर्म कार्योंसे सिवाय स्वर्ग सुखके और कुछ मिल ही नहीं सक्ता था। (९) कृत अपराधको अशोक क्षमा कर देते थे, केवल इस शर्तपर कि अपराधी स्वयं उपवास व दान करे अथवा उसके संबंधी वैसा करे। हम देख चुके हैं कि जैन शास्त्रों में प्रायश्चित्तको विशेष महत्व दिया हुआ है। गही, निन्दा, मालोचना और प्रतिक्रमण १-जमीसो० भा० १७ पृ. २७१ । २-अज्जवि तिग्यणसुद्धा अप्पा झाएबि लहइ इंदत्तं । लोयंतियदेवत्तं तत्थ चुआणि बुदि जंति ॥७॥-अष्ट० १० ३३८ ३-धम्मेण परिणदप्पा, अप्पा जदि सुसम्पयोग जुदो। पावदि णिवाणसुई, सुहोवजुत्तो व सग्गसह ॥ ११॥-प्रवचनमार टीका भा० १ पृ. ३९ । ४-स्तम्म देख ७ व जमेसो• भा०. १५. पृ०. २७९। ,. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035243
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1932
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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