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________________ मौर्य साम्राज्य । [ २३३ रिश्तेदारों से मिलती, उसपर उसका पूरा अधिकार होता था । वह जैसे चाहे वैसे उसको खर्च कर सक्ती थी । स्त्री-घनकी रक्षाके लिये कड़े नियम राज्यकी ओर से बने हुये थे । किन्तु यदि पतिकी मृत्युके उपरान्त स्त्री दूसरा विवाह करती थी, तो उसका सारा स्त्रीधन जप्त होजाता था। हां, श्वसुरकी सम्मति से दूसरा विवाह करनेपर वह उस घनको पासक्ती थी। पर इतना स्पष्ट है कि पुनर्विवाह हेय दृष्टिसे ही देखा जाता था । पुनर्विवाह करनेके लिये अतीव कठिन नियम बना दिये गये थे; जिनमें स्त्रियोंके इस अधिकारको यथासंभव परिमित करनेका प्रयास था । पुरुषोंमें बहु विवाह करनेका रिवाज था; किन्तु इसके लिये भी समुचित राजनियम बने हुए थे । । । एक पत्नी से यदि संतान न हो, तो दूसरा विवाह करनेकी साधारण आज्ञा भी । और दूसरी पत्नीसे भी पुत्रोत्पन्न न हो, तो पुरुष तीसरा और फिर चौथा इत्यादि सामर्थ्य के अनुसार विवाह कर सक्ता था; किन्तु दूसरा विवाह करनेके पहले उसे प्रथम पत्नीके भरण-पोषणका पूरा प्रबन्ध कर देना अनिवार्य था । इस नियमके होनेके कारण बहुत कम ऐसे पुरुष होते थे जो बहुपत्नीक हो । किन्हीं विशेष अवस्थाओं में विवाह विच्छेद करनेकी मी राजाज्ञा थी। किंतु उससमय एक पतिव्रत और एक पत्नीव्रतकी प्रधानता थी । " * - जैन कानूनमें इस बातका खास ध्यान रक्खा गया है । उसीके अनुसार बनागुप्त जैसे जैब सम्राट्का राज्य नियम होना उपयुक्त है १ - सरस्वती, मा० २८ खण्ड २ १० १३६० । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035243
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1932
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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