SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 253
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३२ ] संक्षिप्त जैन इतिहास | हला और रुपहला काम कराते हैं । वे निहायत बारीकसे बारीक मलमलपर फूलदार कामकी बनी हुई पोशाकें पहिनते हैं । उनके ऊपर छतरियां लगाते हैं, क्योंकि भारतीयोंको सौन्दर्यका बहुत ध्यान है ।" " जूते एरियन निर्याकसके अनुसार लिखता है कि " भारतवासी नींचे रुईका एक वस्त्र पहनते हैं, जो घुटनेके नीचे आधी दूर तक रहता है । और उसके ऊपर एक दूसरा वस्त्र पहनते हैं । जिसे कुछ तो वे कंधोंपर रखते हैं और कुछ अपने सिरके चारों ओर लपेट लेते हैं । वे सफेद चमड़े के पहनते हैं; जो बहुत ही अच्छे बने हुये होते हैं ।" इस लेख से प्राचीन ग्रंथों में लिखे हुये ' अधोवस्त्र ' और ' उत्तरीय ' का बोध होता है । अधिकांश जनता शाकाहारी थी और मद्यपन नहीं करती थी । आवनृपके चिकने बेलनोंको त्वचापर फिराकर मालिश करानेका बहुत रिवाज था । ब्राह्मणों और श्रमणका आदर विशेष था । श्रमण संप्रदाय में प्रत्येक मुमुक्षु आत्मकल्याण करनेका साधन प्राप्त कर लेता था । चारों वर्णोंमें परस्पर विवाह सम्बन्ध प्रचलित था । विवाह महिलाओंकी जवान पुरुषों और युवती कन्यायोंके होते थे । महिमा | तब बाल्यविवाहका नाम सुनाई नहीं पड़ता था । विवाह के समय पति स्त्रीको अलङ्कार आदि देते थे, पर आजकल के मुसलमानोंके 'मेहर' के समान 'वृत्ति' (या स्त्रीधन) नामका निश्चित धन भी देते थे । इस घन एवं अन्य जो सम्पत्ति स्त्रीको अपने १ - ऐइमे०, पृ० ७० । २- भाप्रारा० भा० २ पृ० ८९५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035243
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1932
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy