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________________ अंतिम केवली श्री जम्बूस्वामी । [ १७७ ૨ ' देखकर प्रतिबुद्ध होगया । सबने ही श्री सुषम्मीचायके निकट I नाकर जिनदीक्षा ग्रहण कर लो। इस समय अजातशत्रु भो अपनी अठरह प्रकारकी सेना के साथ वहां आया था | जंबूकुमार के साथ विद्युच्चोर और उसके पांचनौ साथी एवं सेठानी जिनदासी और जम्बू कुमारकी आठों पत्नियोंने भी जिनदीक्षा ग्रहण कर ली थी। कुल ५२७ मनुष्य उनके साथ मुनि हुये थे। नौ क्रोड सुवर्ण मुद्राओं और इतनी धन-संपदाचा जम्बूकुमारने मोह नहीं किया था और न रमणी - रत्नों की मनमोहक रूप राशि ही उनको कर्तव्यपथसे विचलित कर सकी थी । 3 मुनि जीवन | हुआ 1 जम्बूकुपार मुनि होकर सुम्मस्व मीके निकट तपश्चरण करने लगे थे। जब उनका उपवास पूर्ण हुआ तो उनका प्रथम पारणा राजगृहके सेट निनदास के गृहमें थी । इसके उपरान्त वह वनमें जाकर उग्रोग्र तप करने लगे थे । श्वेतांबरोंका कथन है कि बीस वर्ष तक उनने यह घोर तपस्या की थी और वह सोलह वर्षकी अवस्था में दीक्षित हुये थे । दिगम्बर शास्त्रोंमें उन्हें युवावस्था में मुनि हुआ लिखा है । इम मुनि दशा के पश्चात् उनको ज्येष्ट मुदी सप्तमीके शुभ दिन केवलज्ञानकी प्राप्ति हुई थी । इमी दिन सुधर्मास्वामी मुक्त हुये थे । जम्बू कुमार १- वेतांबर वंशावलिने चोरका नाम प्रभव है और वह जयपुर के राजाका पुत्र था | जम्बूकुम के उपरांत वही पट्टधीश हुआ था; किन्तु दिगम्बर ग्रन्थ नंदि अथवा विष्णुको जम्बुका उत्तराधिकारी बताते है। (जैसा० खण्ड १ वीर वंश० पृ० ३ वजेहि० भ० १ १० ५३१ | २-उ० पृ० ७०९ । ३- जैसा मा० १ वीर वंशा० पृ० २ । ४- जम्बू ० पृ० ६३ । ५ जैप्रा० वी० पृ० २-३ । ड ६- जम्मृ० प० કર ६३ व उपु० पृ० ७१० । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035243
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1932
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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