SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 197
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७६ ] संक्षिप्त जैन इतिहास | वैराग्य । जम्बू कुमारकी मनोवृत्ति वैराग्यमई थी । युवावस्था होनेपर भी वह सांसारिक प्रलोभनोंसे विरक्त थे । एक दिन विपुलाचल पर्वतपर श्री सुधर्मास्वामी संघसहित आये और राजा अजातशत्रु रनवास और पुरजन सहित वन्दना करनेके लिये गये थे । जम्बूकुमार भी गये थे और वह जिनदीक्षा ग्रहण करना चाहते थे; किन्तु सम्बन्धियोंके विशेष आग्रह से घर वापिस लौट आये । श्वेताम्बर आम्नायकी मान्यता है कि इससमय उनकी अवस्था सोलहवर्षकी थी और उनने श्रावक के व्रत धारण किये थे । घरपर आते ही जम्बूकुमारके माता-पिताको उनका विवाह कर देनेकी फिक्र हुई थी । उनने देखा कि यदि उनका विवाह | इकलौता बेटा भोगोपभोगकी सामिग्री और सुन्दर रमणियोंको पाकर सांसारिकतामें संलग्न न हुआ तो अवश्य ही उन्हें उससे हाथ धो लेने होंगे । यही सोचकर उनने आठ सेठपुत्रियों से उनका विवाह कर दिया था। माता-पिता के आग्रह से उनने विवाह तो कर लिया; किन्तु आपने अपनी पत्नियोंके प्रति स्नेहकी एक दृष्टि भी न डाली । वह विवाह के दूसरे दिन ही तपोभूमिकी ओर जानेके लिये उद्यत होगये ! मांने बहुत समझाया और प्रेम दर्शाया | पत्नियोंने विषयभोगोंकी सारता और अपना अधिकार उनपर सुझाया; किन्तु कोई भी जंबूकुमारको दीक्षाग्रहण करने की दृढ़ प्रतिज्ञासे शिथिल न कर सका ! उसीसमय एक विद्युत नामक चोर, जो भर्हद्दास के यहां चोरी करने आया था, जम्बूकुमारके इस वैराग्य और निर्लोभको १-उपु० पृ० ७०३ । २- जैसा सं० खं० १ अं० -३ - वीर० पृ० २ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035243
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1932
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy