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________________ १६८ । संक्षिप्त जैन इतिहास | ही भूल हुई है । उसको देखनेके लिये यहां पर उन प्रमाणोंको उपस्थित करना उचित है, जिनके आधारसे यह गणना हुई है:(१) सत्तरि चदुसदजुत्तो तिणकाला विकमो हवइ जम्मा । अठवरस... सोडसवासेहि भम्मिए देसे ॥ १८ ॥ नंदिसंघ पट्टावली (जेसिभा०, कि० ४ पृ० ७५) (२) सतरि चटुसदजुत्तो तिणकाले विक्कम हवइ जम्मा । अठवरस वाललीला, सोडसवासेहि भम्मये देतेा ॥ रसपण वीसा रज्जो कुणंति मिच्छेोपदेश संजुत्तों । चालीस वरस जिनवर धम्मे पालेय सुरपयं लहियं ॥ ॥ विक्रम प्रबंध ॥ (३) सरस्वती गच्छकी पट्टावलीको भूमिका स्पष्टरूपसे वीर निर्वाणसे ४७० वर्ष बाद विक्रमका जन्म होना लिखा है; यथा:" बहुरि श्री वीरस्वामीकूं मुक्ति गये पोछें च्यारसौ सत्तर ४७० वर्ष गये पीछें श्रीमन्महाराज विक्रम राजाका जन्म भया । " (४) जं रर्याणि कालगओ अरिहा तित्थंकरो महावीरी | तं स्यणि अवंति वई अभिसित्तो पालया रायां ॥ सही पालग रन्न पण पण्णसंयतु होई नंदाणं । अट्ठसयं मुरियाणं तीसचिअ पुस्तमित्तस्स ॥ वलमित्त भानुमित्ता सट्टी वरिसाणि चत्तं नरवाहणे | तह गद्दभिल्ल रन्त तेरसवरिसा सगस्स च ॥ - तीर्थोद्वार प्रकीर्ण । (५) वसुनंदि श्रावकाचार में विक्रम शकसे ४८८ वर्ष पूर्व महावीर निर्वाण होना लिखा है । ( देखो जैन मित्र, वर्ष ५ अंक ११०११-१२ ) । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035243
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1932
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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