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________________ भगवान महावीरका निर्वाणकाल। [१६.. पके उपरान्त हुमा मानें तो शायद किसी अंशमै ठीक भी हो; परन्तु उन्हें तबसे ४६१ वर्ष पश्चात हुआ मानकर शक संवत् बतलाना प्रचलित शक संवतकी गणनासे बाधित है। इस दशामें शक-संवत् प्रवर्तकको ही जन ग्रन्थों का शकराना मान लेना जग कठिन है। इसके साथ ही शक-संवत् प्रवतंकका ठोक पता भी नहीं चलता ! कोई कनिट द्वारा इस संवत् का प्रारम्भ हुआ बताते हैं, तो अन्यों का मत है कि नहपान अथवा चष्टनने इस संवतको चलाया था। किंतु ये सब आधु नक विद्वानों के मत हैं और कोई भी निश्चयात्मक नहीं हैं।' इसके प्रतिकूल प्राचीन मान्यता यह है कि शक संवत् शालिवाहन नामक राना द्वारा शकोंपर विनय पानेकी यादद.तमें चलाया गया था। इस प्राचीन मान्यताको टुघरा देना उचित नहीं जंचता । रुद्रदामनके अन्धौवाले शिलालेखके आधार पर शक संवतको चलानेवाला गौतमो पुत्र शाती (शतवाहन या सालिवाहन) प्रगट होता है । गौतमी पुत्रने अपने विषय में स्पष्ट कहा है कि उसने शकों, पल्लवों और यवनों एवं क्षमतवंशको जड़ मूलसे नष्ट करके सातवाहन वंशका पुनरुद्धार किया था । किंतु कोई विद्वान इसे सन् १२० के लगभग हुआ बताते हैं और इस समय उसका नहपानसे युद्ध करके विनयोपलक्षमें सवत् चलाना ठीक नहीं बैटस'; क्योंकि शक्तवतु मन ७८ ई. से प्रा. म्म होता है। इसी कारण सातबाहन वंशके हालनामक रानाको इस संवतका प्रवर्तक कहा जाता है। किंतु अब उपरोक्त मन्धौवाले शिलालेखसे नहपान का Rमय १-जमीयो०, भा० १. पृ. ३३४ । २-जमीसो०, भा. १७ पृ. ३३५-३३६। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035243
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1932
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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