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________________ १५.] संक्षिप्त जैन इतिहास । निग्रह करनेसे नहीं चूकते थे । राजाओंका तो यह कर्तव्य ही था; किंतु वणिक लोग भी शस्त्रविद्यामें निपुण होते थे और वक्त पड़नेपर उससे काम लेना जानते थे। प्रीतिकरने भीमदेव नामक विद्याधरको परास्त करके राजकन्याकी रक्षा की थी। सचमुच उस समयके पुरुष पुरुषार्थी थे और उनके शिल्प कार्य भी अनूठे होते थे। सात२ मंनिलके मकान बनते थे और उनकी कारीगरी देखते ही बनती थी। सोनेके स्थ और अम्बारियां दर्शनीय थे। उनके घोड़े और हाथियोंकी सेना जिस समय सजधजके निकलती थी, तो देवेन्द्रका दल फीका पड़ा नजर पड़ता था। उस समयके चत्य और मूर्तियां अद्भुत होती थीं । उनके एकाध नमुने आज भी देखनेको मिलते हैं । लोग बड़े पुरुषार्थी, दानी और धर्मात्मा थे । सारांशतः उस समयकी सामाजिक स्थिति आजसे कहीं ज्यादा अच्छी और उदार थी। उस उदार सामाजिक स्थितिमें रहते हुये, भारतीय अपनी धार्मिक प्रवृत्तिमें भी उत्कृष्टताको पाचुके थे। धार्मिक स्थिति ।। जिस समय भगवान महावीरजीका जन्म भी नहीं था, उसके पहिलेसे ही यहां वैदिक क्रियाकाण्डकी बाहुल्यता थी। धर्मके नामपर निर्मुक और निरपराध जीवोंकी हत्या करके यज्ञ-वेदियां रक्तरंजित की जाती थीं। कल्पित स्वर्गसुखके लालचमें इतर समान ब्राह्मणोंके हाथकी कठपुतली बन रहा था। उन्हें न बोलनेकी स्वाधीनता थी और न ज्ञान लाभ करनेकी खुली माजी ! १-जैप्र० पृ. २२९ । २-मम• पृ० ५८ । 3-उपु० पृ. ७५०। ४-मम० पृ. ५२-५६ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035243
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1932
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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