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________________ संक्षिप्त जैन इतिहास । बड़ी ही ज्ञानवती और विदुषी होती थीं। वह शृङ्गार करना और सुन्दर वस्त्र पहेनना जानती थी; किन्तु शृङ्गार करनेमें हो तन्मय नहीं रहती थीं। वह बाह्य सुन्दरताके साथ अपने हृदयको भी अच्छे २ गुणोंपे सुन्दर बनाती थीं। वह कन्यायें योग्य अध्यापिकाओं अथवा, साध्वीयोंके समीप रहकर समुचित ज्ञान प्राप्त करती थीं और प्रत्येक विषयमें निष्णात बननेकी चेष्टा करती थीं । उस समयकी एक वेश्या भो बहत्तरकला, चौसठ गुग और अठारह देशो भाषाओं में पाराङ्गत होती थी। ( विधाक सुत्र १-३)* संगीत विद्याका बहुत प्रचार था। जीवंधरकुमारने नववेदत्ता आदि कुमारिकाओंको वीणा बजानेमें परास्त करके विवाह किया था। सुरमं नरी और गुणमाला नामक वैश्य पुत्रियां पैद्य विद्याकी जानकार थो। जीवंधरकी माता मयूग्यंत्र नामक वायुयानमें उड़ना सीखती थीं । ब्राह्मग कन्या नंदश्रीने राना श्रेणिककी चतुराईकी खासी परीक्षा ली थी । उस समय पढ़ लिखकर अच्छी तरह होशियार हो जानेपर कन्याओं के विवाह युवावस्थामें होते थे । जबतक कन्यायें युवा नहीं हो लेती थीं, तबतक उनका वाग्दान होनानेपर भी विवाह नहीं होता था। कनकलताको उसके निर्दिष्ट पतिसे इसी कारण अलग रहने की आज्ञा हुई थी । बहुधा कन्यायें वरकी परीक्षा करके, उसे योग्य पानेपर अपना विवाह उपके माथ कर लेती थीं। युवावस्था में विवाह होनेसे उनकी संतान भी बलवान और दयनीवी होती थी। यही ___x ईऐ. मा. २० पृ. २६ । १-क्षत्रचूडामणि काव्य व भम. पृ. १२७-१३४ । २-३• पु० पृ. ६१७। ३-उ० पु० पृ. ६४२ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035243
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1932
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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