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________________ १४४] संशिम. जैन इतिहास.। करके उसे भी जीवंधरने व्याहा था। वणिकपुत्र प्रीतकारका विवाह राजा जयसेनकी पुत्रीके साथ हुआ था। विवाह सम्बन्ध करनेमें जिस प्रकार वर्णभेदका ध्यान नहीं रक्खा जाता था, वैसे ही धर्मविरोध भी उसमें बाधक नहीं था । वसुमित्र श्रेष्ठी जैन थे; किन्तु उनकी पत्नी धनश्री अनैन थी। साकेतका मिगारसेठी जैन था; किन्तु उसके पुत्र पुण्यवर्द्धनका विवाह बौद्ध धर्मानुयायी सेठ धनं. जयकी पुत्री विशाखासे हुआ था । सम्राट् श्रेणिकके पिता उपश्रेणिकने अपना विवाह एक भीलकन्यासे किया था। भगवान महावीरके निर्वाणोपरान्त नन्दराजा महानंदिन जैन थे । इनकी रानियोंमें एक शूद्रा भी थी, जिससे महापद्मका जन्म हुआ था। चम्पाके श्रेष्टी पालित थे। इनने एक विदेशी कन्यासे विवाह किया था। प्रीतंकर सेठ जब विदेशमें धनोपार्जनके लिये गये थे, तो वहांसे एक राजकन्याको ले आये थे; जिसके साथ उनका विवाह हुआ था। इस कालके पहलेसे ही प्रतिष्ठित जैन पुरुष जैसे चारुदत्त अथवा नागकुमारके विवाह वेश्या-पुत्रियोंसे हुये थे । सारांशतः उस समय विवाह सम्बन्ध करने के लिये कोई बन्धन नहीं था । सुशील और गुणवान् कन्याके साथ उसके उपयुक्त वर विवाह कर सक्ता था। स्वयंवरकी प्रथाके अनुसार विवाहको उत्तम समझा जाता था । १-क्षाचू० लंब ५ श्लो० ४२-४९।२-उपु० पर्व ७६ श्लो० ३४६३४८ । ३-आक० भा० ३ पृ० ११३ । ४-भमबु० पृ. २५२ । .५-आक• भा० ३ ० ३३ । ६-चीर वर्ष ५ पृ० ३८८ । ७-उसू० २१ । -उपु० पृ० ०३३) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035243
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1932
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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