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________________ श्री वीर-संघ और अन्य राना। [१११ मान्यना बौड ग्रंथोंसे बाधित है। उनसे यह स्पष्ट पता चलता है कि वीरसंघमें मुनि-आर्यिकाओं के साथ २ श्रावक-श्राविका भी थे। यह अवश्य ही गृहत्यागी उदासीन श्रावक थे; यही कारण है कि बौद्ध ग्रन्थों में इन्हें 'गिही ओदात वसना' 'मुण्ड सावक' और 'एकशाटक निगन्थ' कहा है । दिगम्बर जैन शास्त्रोंके अनुसार गृहत्यागी श्रावकको श्वेत वस्त्र धारण करने, सिर मुंडा रखने और उत्कृष्ट दशामें मात्र एक वस्त्र धारण करने का विधान मिलता है। दिग. जैन शास्त्र भी उत्कृष्ट श्रावक निग्रन्थका उल्लेख 'एकशाटक' नामसे करते हैं। अतएव वीर संघमें साधु-माध्वियोंके साथ२ श्रावक श्राविकाओंका संमिलित होना प्रमाणित है। बौद्ध ग्रन्थोंसे यह भी प्रगट है कि भगवान महावीरनीका वीर संघले गण संघ उप समय था और उपमें गणरूप मेद और गणधर । भी विद्यमान थे; क्योंकि बौद्ध लोग भगवान महावीरको संघ और गणका आचार्य (निगन्ठो नातपुत्तो संघी चेव गणी च गणाचार्यों च.... ) बतलाते हैं। जैन ग्रन्थोंसे भी भग १-दीनि० मा० ३ पृ० ११७-१८ यहां भगवान के निर्वाण उपगन्त निग्रंथ मुनियोंके परस्पर विवाद करनेका उल्लेख है; जिसे देखकर संघके श्रावक (निगन्ठस्स नाथपुत्तस्स सावका गिही ओदातवसना ) दुखी हुये थे। २-भमबु० परिशिष्ट १० २०८-२10 'एक्शाटक' का व्यवहार उत्कृष्ट प्रावकके लिये हुआ है । बुवघोष इन्हें एक वनधारी, लंगोटी या खंडचेलधारी कहते है:-"एकशाटक ति एकेस पिलोतिक खन्डेन पुरतो पतिच्छादानका ।'-मनोरथपूरिणी ३ १० १५ । "पुस्ताल लम्बते दसादिव्यावदन पृ. ३७० (With hanging cloth). ३-सागारधर्मामृत ३८-४८ । ४-आदिपुगण ३८१५८ ३९७७ । ५-दीनि० माग १५. ४८-४९ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035243
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1932
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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