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________________ १२० ] संक्षिप्त जैन इतिहास | धर्मका प्रचार किया था । उनकी शरणमें अनेक भव्य प्राणी माये थे । कोई मुनि हुआ था, कोई उदासीन श्रावक के व्रत लेकर भगवान के साथ रहने लगा था और कोई मात्र असंयत सम्यग्दृष्टी होगया था। भारतीय महिलायें अपनी धार्मिकता के लिये प्रसिद्ध हैं । वह भी एक बड़ी संख्या में भगवानकी शरण में आकर आत्मकल्याणके पथपर लगीं थीं। इसी समय भगवानके तीर्थ में प्रथम जैन संघका नीवारोपण हुआ था। भगवान ऋषभदेवकी प्राचीनता इतिहासातीत कालमें है; जिसका पता लगाना कठिन है । अतः जैनों में संघ व्यवस्था भी कुछ कम प्राचीन नहीं है । श्री वीर अथवा उसके उद्गमका सहज पता पालेना एक कठिन महावीर संघ में कार्य है । तो भी भगवान ऋषभदेवके द्वारा चार अङ्ग थे । उसका प्रथम संगठन हुआ था । उसके चार अंग थे; अर्थात् (१) मुनि, (२) आर्यिका (३) श्रावक और (४) श्राविका । इस प्रकारकी संघव्यवस्था प्रत्येक तीर्थंकरके समवशरणमें रही थी और भगवान महावीरजीका संघ भी ऐसा ही था । वह 'वीर - संघ' अथवा 'महावीर संघ' के नामसे प्रख्यात था। उसके भी चार अङ्ग थे । यद्यपि श्वेताम्बर आम्नायकी मान्यता ऐसी प्रगट होती है कि भगवानके संघमें केवल मुनि और आर्थिका साथ रहते थे । श्रावक-श्राविका तो वह धर्मवत्सल महानुभाव थे, जो घरमें रहकर धर्मान करते थे । ( गिहिणो गिडिमज्झ वसन्ता ) किन्तु यह १ - संजैइ० तृतीय परिच्छेद । २-उद० २1११९ व दिजै० वर्ष २१ पृ० ३८ किन्तु उनके कल्पसूत्र में वीर संघमें चारों अंग गिनाये गये हैं ( Js. pt. I. ) ऐसे ही श्री हेमचन्द्राचार्य भी प्रगट करते हैं । (निषसाद यथास्थान सङ्घस्त्रचतुर्विधः । परि० १० १) । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035243
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1932
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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