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________________ ९८ ] संक्षिप्त जैन इतिहास । प्रख्यात था । उसीके संसर्गसे राजा को भी जैनधर्म में प्रतीत हुईं थी । अईदास सेठने भगवान महावीरजीके निकटसे व्रत नियम ग्रहण किये थे । उत्तर मथुरा के समान ही दक्षिण मथुग़में भी जैनधर्मका अस्तित्व उस समय विद्यमान था । भगवानके निर्वाणोपरांत यहांपर गुप्ताचार्य के आधीन एक बड़ा जैनसंघ होने का उल्लेख मिलता है । भगवान महावीरजीका बिहार दक्षिण भारतमें भी हुआ था । दक्षिण भारत में कांचीपुरका राजा वसुपाल था और वह संभवतः वीर प्रभू । भगवानका भक्त था । (आक० भा० ३८० १८१) जिस समय भगवान हेनांगदेश में पहुंचे थे, उस समय राजा सत्यंघरके पुत्र जीवंधर राज्याधिकारी थे । हेमांगदेश आजकलका मडीसूर (Mysore ) प्रांतवर्ती देश अनुमान किया गया है; क्योंकि यहीं पर सोनेकी खाने हैं, मलय पर्वतवर्ती वन है और समुद्र निकट है । हेमांगदेशके विषय में यह सब बातें विशेषण रूप में लिखीं हैं । हेमांग देशकी राजधानी शहपुर थी; जिसके निकट ' सुरमलय ' नामक उद्यान था | भगवानका समोशरण इसी उद्यानमें अवतरित हुआ था | राजा जीवंधर भगवान महावीरको अपनी राजधानी में पाकर बड़ा प्रसन्न हुआ था । अन्त में वह अपने पुत्रको राजा बनाकर सुनि होगया था । सुन डोकर वह वीर संघके साथ रहा था । जब बीरसंघ विहार करता हुआ उत्तरापथकी ओर पहुंचा था, त जीवंधर मुनिराजने अग्रड के बलीरूपमै राजगृह के विपुलाचल पर्वतसे १ - कौ० पृ० ६ । २ - वीर वर्ष ३ पृ० ३५४ । ३- आक० भा० १ पृ० ९३ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035243
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1932
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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