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________________ ज्ञात्रिक क्षत्री और भगवान महावीर | [ ९५ सिद्ध हुये थे । * अन्ततः सुदर्शन सेठके साथ ही यह राजा भी जैन मुनि हुये थे । सुदर्शन सेठ अपने शीलधर्म के लिये बहु प्रख्यात हैं । इन्होंने मुक्तिलाभ किया था । राजा दधिवाहन मुनि दशामें जब वीर संघमें शामिल होगये, तब एकदा वह विपुलाचल पर्वत पर समोशरणके बाहरी परकोटेर्ने ध्यानमग्न थे। उस समय लोगोंके मुखसे यह सुनकर उनके परिणाम क्रुद्ध हो चले थे । और उनके कारण उनकी आकृति बिगड़ी दिखाई पड़ती थी, कि उनके मंत्रिमंडलने उनके बालपुत्र को धोखा दिया है। श्रेणिक महाराजने वीर प्रभुसे यह हाल जानकर उनको सन्मार्ग सुझाया था और इसके बाद शीघ्र ही वह मुक्त हुए थे । इस घटना के बाद ही शायद मगधका आधिपत्य अंगदेश पर होगया था | चम्पा में जैनों का 'पुण्यभद्द' (पुण्यभद्र) चैत्य (मंदिर) प्रसिद्ध था। यहांपर एक प्रसिद्ध सेठ कामदेवने भगवानसे श्रावक के बारह व्रत ग्रहण किये थे । इसी विहार के मध्य एक समय भगवान महावीरनीका समोबनारसमें भगवान शरण बनारस पहुंचा था। वहां पर राजा जित महावीर । शत्रुने उनका विशेष आदर किया था। यहांपर चूस्तीपिया और सुगदेव नानक गृहम्थोंने अपनी अपनी पत्नियों सहित श्रावक व्रत ग्रहण किये थे। यहां जितारि नामक राजाकी पुत्री मुण्डाको वृपमश्री आर्थिकाने जैनी बनाया था । * राजा दधिवाहनका समय भ० महावीर के लगभग होनेके कारण ही सुदर्शन सेठको उनका समकालीन लिखा है । १ - सुदर्शन चरित, पृ० १-१०५ व डिजेब ० १०२ । २ - उपु० पृ० ६९९ । ३-३६० ०ग्रा० २ । ४-३१० ६५० ३ । ५० पृ० ९४ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035243
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1932
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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