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________________ ९४ ] संक्षिप्त जैन इतिहास | २ यह इक्ष्वाकुवंशी क्षत्री थे । प्रसेनजितका पुत्र विदुरथ था और इसके साथ ही इस वंशका अन्त होगया था । कौशल उस समय मगधके आधीन था । श्रावस्ती से भगवानने कौशलके देषष्ठी आदि नगरों में विहार करके ज्ञानामृतकी वर्षा की थी । और इस प्रकार हिमालयकी तलहटीतक वे दिव्यध्वनिको प्रध्वनित करते विचरे थे' । मिथिलामें भगवानने अपने सदुपदेशसे जनताको कृतार्थ किया था । वैशाली में उनका शुभागमन कईमिथिला, वैशाली, व चंपा आदिमें जिनेन्द्र वार हुआ था । राजा चेटक आदि प्रधान देवका धर्मघोष | पुरुष उनकी भक्ति और विनय करनेमें अग्रसर रहे थे । वहां आनंद नामक श्रेष्टी और उसकी पत्नी शिवनंदा गृहस्थ धर्म पालने में प्रसिद्ध थे । इनने महावीरजी के सन्न कट श्रावक के बारहव्रत ग्रहण किये थे । पोलाशपुरमें भगवानका स्वागत राजा विजयसेनने बड़े आदरसे किया था । ऐमत्ता नामक उनका पुत्र भगवान के चरणों में मुनि हुआ था । अंगदेशके अधिपति कुणिक ने भी चंपा में भगवान के शुभागमनपर अपने अहोभाग्य समझे थे । और वह भगवान के साथ२ कौशांबीतक गया था । । • चम्पाके राजा दधिवाहन, श्वेतवाहन, अथवा घाड़ीवाहन, जो विमलवाहन मुनिराजके निकट पहले ही सेठ सुदर्शन | मुनि होगये थे, भगवान महावीरके संघमें संमिलित हुये थे । इनकी अभया नामक रानीने चम्पाके प्रसिद्ध राजसेठ सुदर्शनको मिथ्या दोष लगाया था । किन्तु सुदर्शन निर्दोष १-भम० पृ० १०८। २ - हॉजै० पृ० ३९... । ३-उद० १-९० और डिजैब ( ० पृ० ७५।४ - डिजैबा० पृ० २७ । ५- भन० पृ० १०८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035243
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1932
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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