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________________ ८८] संक्षिप्त जैन इतिहास । नातपुत्त कहते हैं। जैनधर्म का उल्लेख बौद्ध ग्रन्थों में एक पूर्व निश्चित और म० बुद्धके पहिलेसे प्रचलित धर्मके रूपमें हुआ मिलता है। अतएव जैनधर्मको बौद्धधर्मकी शाखा नहीं कहा जासक्ता । हां! इसके विपरीत यह कह सक्ते हैं कि म. गौतम बुद्धने मैनधर्मसे अपने धर्म निर्माणमें बहुत कुछ सहायता ली थी। भगवान महावीरके पवित्र जीवनका उनपर काफी प्रभाव पड़ा था। जिस समय भगवान महावीर सर्वज्ञ होगये तो नियमानुमार भगवान महावीरका उनकी वाणी नहीं खिरी । नियम यह है प्रारंभिक उपदेश। कि जिस समय तीर्थकर केवली होजाते हैं, उस समयसे उनकी आयुपर्यंत नियमित रूपसे प्रतिदिन तीन समय मेघ गर्जनाके समान अनायास ही वाणी खिरती रहती है। जिसे प्रत्येक जीव अपनी२ भाषामें समझ लेते हैं । यह वाणी अर्धमागधी भाषामय परिणत होती है, जो सात प्रकारकी प्राकृत भाषाओंसे एक है। किन्तु भगवान महावीरजीके सर्वज्ञ होनानेपर भी यह प्रसंग सहन ही उपस्थित न हुआ । जैन शास्त्र कहते हैं कि उस समय भगवानके निकट ऐसा कोई योग्य पुरुष नहीं था, जो उनकी वाणीको ग्रहण करता । इसी कारण भगवानकी वाणी नहीं खिरी थी । देवलोकका इन्द्र अपने देवपरिकर सहित भगवानका 'केवलज्ञान कल्याणक' उत्सव मनाने आया था। वहां भी वह उपस्थित था। उसने अपने ज्ञानबलसे जान लिया था कि वेदपारां. गत प्रसिद्ध ब्राह्मण विद्वान् इन्द्रभूति गौतम भगवानकी दिव्यध्वनिको अब धारण करनेकी योग्यता रखता है। इन्द्रकी माज्ञासे भगवानके १-चरचा समाधान पृ० ३९। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035243
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1932
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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