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________________ ८४ ] संक्षिप्त जैन इतिहास प्रथम भाग । Miilo लाभ किया था। आपके भी वह सर्व दिव्य बातें और घटनायें हुई थीं. जो सर्व तीर्थकरों के होती हैं । छठवें तीर्थकर पद्मप्रभु थे । यह कोशांबी नगरी के राजा मुकुटवरी रानी सुसीमा गर्भमें माघ वदी छठको आए थे और कार्तिक कृष्णा त्रयोदशीको तीनों ज्ञान सहित आपका जन्म हुआ था । आप पट्टन्त्र राजा थे और विवाहित थे। आपने कार्तिक वदी तेरसको एक हजार राजाओं सहित दीक्षा धारण की थी । वर्द्धमान नगर के राजा सोमदत्तने आहार दिया था । छः मास घोर तपश्चरण किया । पश्चात् चार घातिया कर्मोंका नाश कर आप केवलज्ञानी हुए थे। समस्त आर्यखण्ड में विहार कर दिव्यध्वनि द्वारा उपदेशामृत पिला फागुन वदी चतुर्थी के दिन आपने सम्मेद शिखर से निर्वाण प्राप्त किया था । पद्म भूके हजार क्रोड़ सागर बाद भगवान सुपार्श्वनाथका जन्म हुआ । राजा सुपतिष्ठकी रानी पृथ्वीषेणा के गर्भ में भादों वदी छठको आकर जेठ सुदी बारसको बनारस में जन्मे थे । आपने दीर्घकाल तक राज्यभोग किया। पश्चत् दीक्षा ग्रहण कर ( जेठ सुदी १२ को आपने दो दिनका उपवास किया था । सोमखेट नगर के राजा महेन्द्रदत्तके यहां आपने प्रथम आहार किया था । पश्चात् नौ वर्ष तप तपा तब आपको फागुन वदी छठको केवलज्ञान प्राप्त हुआ । धर्मोपदेशसे - संसारका हित करके आपने फाल्गुन वदी सप्तमी के दिन सम्मेद शिखर से निर्वाण स्थानको प्राप्त किया । आपका उल्लेख हिन्दुओंके यजुर्वेद में है। यथाः- ॐ सुपार्श्व मिन्द्रहवे'। सब तीर्थंकरोंकी भांति आपके सम्बंध में मी सब बातें हुई थीं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035242
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1943
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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