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पहिला परिच्छेद ।
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थी जैसी कि इस समय रावलपिण्डीकी है। ( यहांकी खुदाईमें एक जैन स्तूप मी निकला है।)
सिंहापुर या सिंघापुर-जेहलम जिलेके अन्तर्गत कटासके झरनेके निकट था ।
मतिपुर-पश्चिमी रुहेलखण्ड । ब्रह्मपुर गढ़वाल और कुमाऊं । कौशाम्बी-यमुना नदीके तटपर प्रयागसे ऊपर स्थित हैं।
(जैनोंका प्राचीन केन्द्र था) प्रयाग-इलाहाबाद ।
(,) वारणसी या वाणारस-बनारस। (,) वैशाली-गङ्गानदीके उत्तरमें तिहुत प्रान्त । ( भ. महावीरका
जन्मस्थान इसके निकट था। ) सरस्वती-वैदिक कालमें उस नदीका नाम था जो थानेश्वरके चीचमें बहती थी। बोद्धकालमें सरस्वती एक प्रदेशका नाम था जो अयोध्याके उत्तरमें राप्ती नदीके तटपा था ।
पाटलिपुत्र-पटना। राजगृह-पाटलिपुत्र और गयाके बीच एक नगर था। नालन्द-पाटलिपुत्र और गयाके बीच एक विश्वविद्यालय ।
यदि जैन दृष्टिसे हम इस विषयमें विचार करें तो हमें ज्ञात होता है कि अति प्राचीन जमानेमें जैनधर्मके इस युगकालीन धर्मप्रवर्तक श्री ऋषभदेव भगवाननं ही भारतवर्षको विविध देशों में विभक्त किया था और उनपर राजाओंकी नियुक्ति की थी। “उस समय जो पुरुष भगवानसे क्योवृद्ध थे और कुटुम्ब (ईश्वानुवंश ) से स्पन्न थे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com