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जातिके इतिहासका प्रारम्भ इसी समयसे हुआ है, किंतु यह समय परिवर्तनका था जिसमें धर्ममार्गका लोपसा हो गया था और मनुष्य प्रायः अधर्म-मार्गकी ओर रुजू होगये थे ।*
इसके अतिरिक्त कई विद्वानोंने वेदोंको गौग्व दृष्टि म्मरण किया है। इतिहासके प्रारम्भ कालमें ही कोई भी ग्रन्थ वेदोंके समान संगठित नहीं हो सक्ते और ऐसी अवस्थामें जब कि लोग अनपढ़ बताए जाते हैं, इससे भी मालूम होता है कि न तो उस समयके मनुष्य ही अनपढ़ थे और न वह समय ही आर्य जातिके इतिहासके प्रारंभका 'था, किन्तु इस समयसे भी करोड़ों वर्षों पहिलेसे आर्य जातिका इतिहास चला आता होगा।
आधुनिक विद्वानोंने काले रंगवाले मनुष्योंको अनार्य बतलाया है परन्तु किसी जातिको रंगमें काले होने ही के कारण अनार्य नहीं कह सकते। अतएव द्राविड़ जाति भी केवल इसीलिए अनार्य नहीं कहला सकती और न इसके लिये कोई काफी प्रमाण ही है कि द्राविड़, कोल, मंगोल आदि जंगली जातियों के सिवाय भारतवर्षमें और कोई सभ्य जाति थी ही नहीं ।
भारतवर्षकी जातियां । भारतवर्षके प्राचीन समयमें वहांके रहाकू आर्योंमें मूलसे चार वर्ण थे और उन ही के अनुसार केवल चार जातियां थीं, परन्तु पश्चात् विदेशी जातियोंके आक्रमणके समयसे उनमें मिश्रण हो गया प्रतीत
* बा. सरजमल जैन कृत "जैन इतिहास" भाग प्रथम पृ० १४ । x पूर्व पूछ १३.
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