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२२] संक्षिप्त जैन इतिहास प्रथम भाग । यह देव जिसने अपनेको शांडल्य ऋषि बतलाया था, अपने एक पूर्वभवमें मधुपिंगल नामक राजा था; जिसकी भावी स्त्री किसी शत्रुद्वाग न मिलने पाई थी। उस कन्याकी माताने मधुपिंगलको अपनी पुत्री अर्पण करनेका संकल्प किया था, इस कारण मधुपिंगलको उस सुलसा नामक कन्यासे वरमाला प्राप्त करनेमें कोई शंका नहीं थी। इसके शत्रु सागरको यह भेद मालूम हो गया और सुलसाके रूपलावण्य पर आसक्त हो उसने मंत्रीमे इस विषयमें सम्मति ली । इस दुष्ट मंत्रीने एक झूठा सामुद्रिक शास्त्र बनाकर चुपकेस स्वयंवर स्थानमें गाढ़ दिया। और जब सब राजा स्वयंवरके दिन इकटे हुए. तब उसने उस सामुद्रिक शास्त्रको दैवीकृत्यके रूपमें प्रकट किया। फिर वह बाहर निकाला गया और पढ़ा गया। मधुपिंगल विषयक वाक्योंको खूब जोर देकर यह दर्शाते हुए पढ़ा, कि मधुपिंगलकी आंखें उसको और उसके कुटुंबियोंके लिये दुर्भाग्यसूचक हैं । इस प्रकार मधुपिंगलने अपना अपमान जानकर अपने कपड़े उतार कर फेंक दिये और साधु रूपमें रहने लगा। उधर सुलसाने सागरके गलेमें वरमाला डाली । इसके कुछ काल पश्चात् मधुपिंगलको सव सच्चा हाल किसी ज्योतिषी द्वारा ज्ञात होगया। जिसके कारण वह क्रोधको प्राप्त हुआ और उसी अवस्थामें उसकी मृत्यु होगई। और मरकर वह पटलवासी देव हुआ। ___अवधिज्ञान द्वारा सारा हाल मालूम कर वह अपने पूर्वभवके शत्रु सागरसे अपना वैर चुकानेमें प्रयत्नशील हुआ और तत्काल ही • इस मध्यलोकमें आया और परवतको अपने देशसे निकाला हुआ
स्वमत प्रचार हेतुमार्गका विचार करते हुए पाया । परवतको अपना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com