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१.] संक्षिप्त जैन इतिहास प्रथम माग । ईस्वीसन्मे बहुत पहलेकी बनी हुई हैं और जैन तीर्थरोंकी हैं। धाराशिवकी गुफाओंमें महाराजा करकण्डुने ई० पूर्व ७ वीं-८ वी शतीमें जिन मूर्तियां बनवाई थीं। खंडगिरि उदयगिरिक हाथीगुफावाले शिलालेखमें एक जिनमूर्तिका उल्लेख है जिसे नन्द सम्राट् कलि
से पटना लेगये थे। मथुरामें एक ऐसा बोधस्तूप मिला है जिसे कुशनकालके लोग देवनिर्मित अर्थात् ईस्वी पूर्व ८ वीं शतीका निर्मित मानते थे। पटना बांकीपुर रेल्वे स्टेशनसे मौर्यकालीन दि० जैन प्रतिमायें उपलब्ध हुई हैं। सम्राट अशोकने जैनोंका उल्लेख 'निर्ग्रन्थ' नामसे अपने एक धर्म लेखमें किया है। इन शिलालेखीय उल्लेखों और साक्षीसे भी जैनधर्मकी प्राचीनता प्रमाणित होती है।
इस प्रकार जैनधमकी ऐतिहासिक प्राचीनता ईसाके पहिले ५००० से ८०० वर्ष तक प्रकट होती है। प्राच्य विद्यामहार्णवोंकी महत्वपूर्ण खोजसे आगामी इस विषय पर और भी प्रकाश पड़नेकी संभावना है।
ऐतिहासिक कालके पहिले जैनधर्म। ऐतिहासिक कालके पहिले जैनधर्मके अस्तित्वका जब हम विचार करते हैं तो हमको उसके सिद्धांतकी ओर दृष्टिपात करना पड़ता है। जैन धर्मके सिद्धान्तका दिग्दर्शन करनेसे हमें उसका वैज्ञानिक ढङ्ग प्रगट होजाता है और हमें ज्ञात होजाता है कि उसके
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२-Jain Antiguary..:... . . :.: Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com