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प्रस्तावना |
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जैन मूर्तियोंके सदृश बताया है ।' कुछ तो बिलकुल जैन मूर्ति ही दिखतीं हैं। एक मुद्रापर प्रो० प्राणनाथने “जिनेश्वर " शब्द पढ़ा है।' इन्हीं प्रो० सा०ने प्रभासपाटणसे प्राप्त ताम्रपत्रके लेखको निम्नप्रकार पढ़ा है:
" रेवा नगरके राज्यके स्वामी, सु... जातिके देव, नेबुशदनेजर आये हं । वह वदुराजके स्थान ( द्वारिका ) आये हैं। उन्होंने मंदिर बनवाया हैं । सूर्य ... देव नेमि कि जो स्वर्ग समान रेवतपर्वतके देव हैं (उन्हें ) सदैवके लिये अर्पण किया ।" ( गुजराती 'जैन' भाग ३५ पृष्ठ २ ) बावल (Babylonia) के सम्राटोंमें नेवुशर नेजर नामक दो सम्राट् हुये हैं । पहलेका समय ईस्वी सन्से लगभग दो हजार वर्ष पहले है और दूसरे ईस्वी सन् पूर्व ६ ठीं या ६ वीं शती में हुए हैं। इन दोनोंमेंसे किसी एकने द्वारिका आकर खैत ( गिरिनार ) पर्वतपर भ० नेमिनाथका मंदिर बनवाया था। प्रो० सा० इस उल्लेखसे जैन धर्मकी बहु प्राचीनताका बोध होता बताते हैं ।
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इसके अतिरिक्त धाराशिव (तेरपुर), खंडगिरि उदयगिरि, मथुरा, रामनगर (बरेली) और दक्षिण भारत में ऐसी मूर्तियां मिली हैं जो
१ - रा० प्र० चन्दा, मोडर्न रिव्यू अगस्त १९३२, पृष्ठ १५८-१६०. २ - माग्ाल मा० की पुस्तकमें हरप्पाकी मूर्तिका चित्र नं० १० और प्लेट न० १३ के १५ व १६ नं०के चित्र देखो । ३- इंडियन हि० क्का० भाग ८ परिशिष्ट पृष्ठ १८ - ३२. ४ - ककुंडचरिउ ( कारखा सीरीज ) की भूमिका, पृ० ४१-४८ । ५-चक्रवर्ती - Notes on the Rom - ains on Dhauli and in the Caves of Udaygiri Khandagiri, P. 2. ६ - स्मिथ, जेन स्तूप एन्ड अधर एंटीक्वटीज़ आफ मथुरा, पृष्ठ २४-४५. ७ - Laders, JRAS January 1912. <-Studies in South Indian Jainism, P. 34.
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