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________________ १०६] संक्षिप्त जैन इतिहास प्रथम भाग । भगवान द्वारा प्रतिपादित उत्तरोंका वर्णन है । इसमें २,२८,००० मध्यमपद हैं। (६) ज्ञातृकथाङ्ग वा धर्मकथाङ्गमें ९ पदार्थ जीव आदिके स्वभावका वर्णन और भगवानसे पूछे गए गणघरों के प्रश्नों के उत्तर हैं। इसके ५.५६,००० मध्यपद हैं । (७) उपासकाध्ययनाङ्गमें गृहस्थ श्रावककी ११ प्रतिमाओंका वर्णन है अर्थात् गृहस्थोंके चारित्र सम्बन्धी नियमों आदिका वर्णन है । इसमें ११,७०,००० मध्यमपद हैं। (८) अन्तःकृतदशाङ्गमें उन १० मुनियों का वर्णन है जो २४ तीर्थङ्करों के प्रत्येकके समयमें होते हैं और दुर्धर तपश्चरण कर अपनेको सम्पूर्ण कम्मोसे मुक्त कर लेते हैं। इसमें २३,२८.००० मध्यमपद हैं। (९) अनुत्तरोत्पादकदशाङ्गमें उन १०-१० मुनियों का वर्णन है जो प्रत्येक तीर्थङ्करके समयमें होते हैं, और कठिन तपश्चरणका • अभ्यास कर म्वर्गलोकके पांच अनुत्तर विमानोंमें जन्म लेते हैं। इस अंगमें ९२,४४,००० मध्यमपद होते हैं। , (१०) प्रश्नव्याकरणाङ्गमें कथनी, आक्षेपिणी ( सत्यको प्रगट करनेवाली ), विक्षेपिणी (भ्रमकी बिध्वंशक ), संवेदिनी ( सत्यकी ओर प्रेमोत्पादक ) और निर्वेदिनी ( मोहसे पीछा छुड़ानेवाली) विद्याओंका वर्णन है । इसमें ९३,१६,००० मध्यमपद हैं। __ (११) विपाकसूत्राङ्गमें कर्मके बन्ध, उदय और सत्ताका वर्णन है और द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावकी अपेक्षा उनकी कठोरता और कोम Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035242
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1943
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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