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..... चतुर्थ पल्लेिख ः .. [८९ भगवान वासुपूज्यके ही समयमें भोगवर्द्धनपुरके राजा श्रीधरके पुत्र तारक इस युगके द्वितीय प्रतिनारायण थे। यह बड़े अन्यायी थे। इनका युद्ध द्वितीयनारायण द्विपृष्ठसे हुआ था, जिसमें इनकी मृत्यु हुई थी। इसी समय द्वितीय बलदेव अचल हुए थे। द्विपृष्ठ और अचल द्वारिकाके राजा ब्रह्मके पुत्र थे।
भगवान वासुपूज्यके मोक्ष चले जानेके बाद बहुत समय पश्चात् मावान विमलनाथ हुए। आपके पिता सुक्रतवर्मा कंपिलानगरीके अधिपति थे। भगवान विमलनाथका जन्म रानी श्यामाके गर्भसे माष मुदी चौदसके दिन हुआ था। आपका विवाह हुआ था और आपने राज्यसुख भोगकर माघ सुदी चौथको दिगंबर दीक्षा धारण की थी।
आपका प्रथम पारणा दीक्षा लेनेके तीसरे दिन बाद धान्यबटपुरमें राजा विशाखके यहां हुआ था। तीन मास तक आप संयमी रहे। पश्चात् मिती पूष वदी दशमीके दिन आप केवलज्ञानी हुए थे । देवनिर्मित समवशरणके साथ आपने आर्यखंडमें विहार किया था। पश्चात् सम्मेदशिखरसे आषाढ़ वदी अष्टमीको आप मुक्तिधामको प्राप्त हुए थे। ममवान विमलनाथके समयमें तीसरे नारायण स्वयंभू और सुधर्म नामक बलभद्र हुए थे।
इनके बहुत समय बाद १४ वें तीर्थकर अनंतनाथने अयोध्यापुरीके इक्ष्वाकुवंशी और काश्यपगोत्री राजा सिंहसेनके यहां माता रेवतीके गर्भसे मिती बेठ वदी द्वादशीको जन्म लिया था। आपने
अमागवाके बाद राज्यविभूतिका भोग दीर्घकाल तक किया था । .wa मीति नेठ वदी बादशीके दिन मापन दीक्षा धारण की थी
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