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________________ ( धर्मशर्माभ्युदय काव्य ) - महाकवि हरिचन्द्रकृत. ( नेमिनिर्वाण काव्य ) - वाग्भट्टविरचित. ... ... ... ( प्राकृतपिङ्गलसूत्राणि ) - श्रीमद्वाग्भटविरचित, लक्ष्मीनाथ भट्टकृत टीकासहित, इस ग्रंथके दो परिच्छेइ (भाग) हैं. संस्कृत नाटकादि ग्रंथोंमें प्राकृत ( बाल ) भाषा बहुतस्थलोंमें आती है. परंतु उस भाषा के वृत्त (छन्द) बहुत से लोगोंको विदित ही नहीं; और नाटकादि ग्रंथ बांचनेवालोंको विदु ws, नटी, तथा स्त्री आदि पात्रोंके संमात्रणमें प्रायः वृत्तज्ञानको परमावश्यकता है. इसलिये ऐसे लोगोंको यह ग्रंथ बहुत उपयोगी है. ( यशस्तिलक ) - श्री सोमदेवसूरिविरचित व्याख्यासमेत पूर्वखण्ड. ( यशस्तिलक ) - श्रीसोमदेवसूरिविरचित व्याख्यासमेत उत्तरखण्ड. ( वाग्भटालंकार ) - भीवाग्भटप्रणीत, सिंहदेवगाण विरचित ... टीकासमेत. ( सुभाषितरत्नसंदोह ) - श्रीमदमितगतिविरचित. ( ही रसौभाग्य ) -- श्रीदेवविमलगणिविरचित, स्वोपशव्याख्यास मलंकृत. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ... श्रीयुतसागरसूरिकृत ... ... की० रु. आ. डां. रु. भा. १ ० ० २ ... ... श्रीयुतसागरसूरिकृत ... ... ... ... 400 ܘܐ ܘ १ १२ ३ १२ २ १२ ० ८ १२ ० O ० ४ ० ५ ८ ( सप्तम गुच्छक) -- इसमें (१) मानतुङ्गाचार्यविरचित भक्तामर स्तोत्र, (२) सिद्धसेनदिवाकरप्रणीत कल्याणमन्दिरस्तोत्र, (३) वादिराजप्रणीत एकीभावस्तोत्र, ( ( ४ ) धनंजयप्रणीत विषापहारस्तोत्र, (५) भूपालकविप्रणीत जिनचतुर्विंशतिका, (६) देवन न्दिप्रणीत सिद्धिप्रिय स्तोत्र, (७) सोमप्रभाचार्यविरचित सूक्तिमुक्तावलि, (८) जम्बू गुरु विरचित जिनशतक, (९) पद्मानन्दकविप्रणति वैराग्यशतक, (१०) जिनप्रभसूरिविरचित सिद्धान्तागमस्तव ( सावचूरि ), (११) आत्मनिन्दाष्टक, (१२) जिनवल्लभसूरिविरचित समसंस्कृतप्राकृतमहावीरस्व मिस्तोत्र, (१३) हेमचन्द्राचार्यविरचित अन्ययोगव्यवच्छेदि. काद्वात्रिंशिकाख्यमहावीरस्वामिस्तोत्र, (१४) हेमचन्द्राचार्यविरचित अयोगव्यवच्छेदिका - द्वात्रिंशिकाख्यमहावीरस्मा मिस्तोत्र, (१५) जिनप्रभसुरिविरचित पार्श्वनाथस्तव, (१६) जिनप्रभसूरिविरचित गौतमस्तोत्र, (१७) जिनप्रभाचार्यविरचित श्री वीरस्तव, (१८) जिनप्र भसूरिविरचितचतुर्विंशति जिनस्तव, (१९) जिनप्रभसूरिविरचित पार्श्वस्तव, (२०) जिनमभसूरिविरचित श्रीवरिनिर्वाणकल्याणस्तव, (२१) विमलप्रणीत प्रश्नोत्तर रत्नमाला, (२२) धनपालप्रणीत ऋषभपञ्चाशिका, (२३) शोभनमुनिप्रणीत चतुर्विंशतिजिनस्तुति (सटिप्पणी ), इतने काव्य हैं. की. रु. १ डां. १२॥ आ. ३ ० ४ तुकाराम जावजी, निर्णयसागर प्रेस, कालबादेवी पोट- मुंबई. www.umaragyanbhandar.com
SR No.035241
Book TitleSanatan Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1907
Total Pages412
LanguageEnglish, Hindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, & Book_Gujarati
File Size3 MB
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