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________________ जैन ग्रंथाः । अध्यात्मकल्पद्रुम. यह सुप्रसिद्ध तपागच्छनायक ( श्रीमुनिसुन्दरसूरिका ) बनाया हुआ 'जैनमतका अत्युत्तम ग्रंथ है । इसमें आर्हद्दर्शन आदितत्त्व सप्रमाण प्रतिपादन किया है । और ग्रंथ (प्रसाद) गुण ऐसा भरा है कि बांचतेसमय शतार्थिक सोमप्रभसूरिके सूक्तिमुक्तावलीकी छटा अति मनोहर भासती है । मूल्य ८ आ. डां. १ आ. सनातनजैन ग्रंथमाला. ( प्रथमगुच्छक) - इसमें १ वृहत्स्वयम्भू स्तोत्रम् २ रत्नकरंड श्रावकाचारः ३५रुपार्थसिद्धयुपायः ४ आत्मानुशासनम् ५ तत्वार्थाधिगममोक्षशास्त्रम् ६ तत्त्वार्थसारः ( तत्त्वार्थ सूत्रकारिका ) ७ आलापपद्धतिः ८ नाटकसमयसारकलश्मः (अध्यात्मतरंगिणि) ९ परीक्षा मुखन्यायसूत्राणि १० आप्तपरीक्षा ११ आप्तमीमांसा वसुनंदि सैद्धांतिक वृत्तिसहिता १२ युक्त्यनुशासनम् १३ नयविवरणम् समाधिशतकम् सटिप्पणं इसप्रकार १५ ग्रंथ संग्रह करके छपाये है. मूल्य. १रु डां. ३ आ. की. रु. आ. डां. रु. आ. ( काव्यानुशासन ) - श्रीमद्वाग्भटविरचित, स्वकृत टीकासहित. (काव्यानुशासन ) - आचार्य हेमचन्द्रविरचित, स्वोपज्ञालंकार ७ १ चूडामणिसंज्ञक वृत्तिसमेत. ( चन्द्रप्रभचरितकाव्य ) - श्रीवीरनन्दिविरचित. इसके १८ सर्ग है. इसमें जिनमतके विषयका विशेष खुलासा है. ( जैनस्तोत्र संग्रह ) - इसमें भक्तामर, कल्याणमंदिर, विषापहार, एकीभाव और भूपालपंचविंशतिका ये ५ मूलस्तोत्र हैं. ( जैन स्तोत्ररत्नाकर ) - इसमें नित्यपाठ करनेयोग्य प्राकृत और संस्कृत जिसमें प्रथम नवकारस्मरण, (द्वितीय) उवसग्ग. हरस्मरण, (तृतीय) संतिकरस्तोत्र स्मरण, (चतुर्थ) तिज पत्त स्मरण, (पंचम) नमिऊण स्मरण, (छट्टा ) श्रीअजितशान्तिस्तव स्मरण, ( सप्तम ) भक्तामर स्मरण, ( अष्टम ) कल्याणमंदिरस्तोत्र, ( नवम ) वृहच्छान्तिस्तवनामक स्मरण इसप्रकार ९ स्मरण और जयतिहुअणस्तोत्र, जिनपंजर स्तोत्र, ग्रहशान्तिस्तोत्र, पार्श्वनाथका मंत्राधिराजस्तोत्र, और यंत्रविधान इसप्रकार के विषय हैं. यह गुटका श्वेताम्बरी जैनी भाइयोंके हितार्थ छपाया है. ( जैननित्यपाठसंग्रह ) - इसमें पंचस्तोत्र सहरुनाम तत्त्वार्थसूत्रादि १६ पाठ दिगम्बरी श्वेताम्बरी दोनों प्रकारके जैनी भाइयोंके हितार्थ संग्रह किये है. रेशमी जिल्हका बहुतही सुंदर गुटका है. ( तिलकमअरी ) - श्री धनपालविरचिता. ( द्विसंधान महाकाव्य ) - श्रीधनंजयविरचित, वदरीनाथविरचित टीकासमेत.... *** Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ... ... ... ... ० २ ४ ० १२ ० ० ० ४ ८ १८ ० O ० ० с १ १ 2 o २ www.umaragyanbhandar.com
SR No.035241
Book TitleSanatan Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1907
Total Pages412
LanguageEnglish, Hindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, & Book_Gujarati
File Size3 MB
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