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________________ ( ७७ > होने वाला, धर्म से पतित समझा जायगा। क्योंकि धर्म से गिरने वाले का दिल निष्ठुर, विध्वंस बन जाता है । उसके दिल में से आस्तिक्य का अंश हट जाता है । वह अपने दिल में समझने लगता है कि 'इसमें क्या' आज बड़े बड़े नेता प्रायः आचार विचार से, खान पान से भ्रष्ट हो गये हैं । इसका एक मात्र कारण है - इसमें क्या' ? महात्मा गाँधी के अनुयायी होन का दावा करने वाले लोग मांस मच्छी, अंडे आदि का सेवन बहुत से करते हैं । साथ साथ अपने व्याख्यानों में महात्मा गांधी जी की हिंसा की दुहाई भी देते हैं । यह परस्पर विरुद्ध बात नहीं क्या ? महात्मा गांधी जी ने तो पहले आचरण और बाद में कथन का सिद्धान्त रखा है। आज बहुत से महात्मा जी के अनुयायीयों में कथन मात्र रह गया है । • इसी प्रकार भारतवर्ष की ब्रह्मचर्य संबन्धी भावनाओं में भी पाश्चात्य ने बहुत बड़ा परिवर्तन कर डाला है । कहाँ तो हमारी यह संस्कृति थी कि " माता स्वस्त्रा दुहित्रा वा, नविविना सनो भवेत् । माता, बहिन, पुत्री के साथ भी एक आसन पर नहीं बैठना चाहिये | कहने की आवश्कता नहीं है कि किस समय मनोवृत्ति किस प्रकार दूषित बन जाय । कहां तो हमारी यह संस्कृति और कहां आज यह शिक्षण, सिनेमा, बीभत्स चित्र नृत्य, सिंगार आदि द्वारा कला के नाम से भारतवर्ष में भ्रष्टाचार प्रचार, युत्रा अवस्था में पहुँचे हुये युवक और युवतियों के साथ में पढ़ने से क्या २ अनर्थ हो रहा है, यह किसी से छिपा नहीं है । सिनेमा के द्वारा आज हमारो बहिन, बेटियां, युवकों, बालकों बल्कि गृहस्थ आश्रम के ऊपर कितनी कालिमा छाई जा रही है । यह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035233
Book TitleSamayik Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year1953
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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