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________________ ( ७० ) यह कि उनके जीवन-विकास का स्रोत बन्द हो गया। वे अपनी शक्तियों से वंचित रह गये । वे फूलों की तरह मुरमा गये । उन बालकों में, उन विद्यार्थियों में, उन शिक्षकों में भी, अपरिपक्व अवस्था में झूठ, प्रपंच, छल, भेद, नीतिज्ञता प्रादि प्रवेश कर गया। देशकाल का विचार भूल गये, स्वपर का ध्यान नहीं रहा । विलायत की धारा सभाओं में अपने मत को मजबूत करने और दूसरे मत को परास्त करने के लिए कुसियाँ उठाई जाती हैं, गाली गलौज किया जाता है, एक दूसरे का अपमान किया जाता है; हम भी राजनीतिज्ञ हैं, हम भी स्वदेश प्रेमी हैं, हम भी किसी एक 'वाद' को रक्खे हुये हैं, इसलिए हमसे विरुद्ध मत रखने वाले का अपमान करना, तिरस्कार करना, गाली गलौज करना, राजनीति की दृष्टि से कोई बुरी बात नहीं। परिणाम यह पाया कि हममें सर्वत्र उच्छृङ्खलता फैल गई। ५-बड़ों के माचरण का प्रभाव छोटों पर अवश्य पड़ता है। यह एक सामान्य हकीकत भी हम लोग भूल गए । सास बहू को सताते समय भूल जाती है कि वह भी एक दिन सास होने वाली है । शिक्षक अपने अधिकारी का अपमान करते समय भूल जाता है कि वह भी इन विद्यार्थियों का अधिकारी है। यह ख्याल नहीं रखने का परिणाम है कि जिन लोगों ने अपने मातहत लोगों के सामने अपने से बड़ों का अपमान किया है अथवा जिन्होंने अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिये अपने से नीचे लोगों को, दूसरों का अपमान करने का पाठ पढ़ाया है, उनको खुद को उन्हीं लोगों की उच्छृखलता आज भारी पड़ रही है। यदि हम खुद नीति पर्वक, मानवता पूर्वक बड़ों के साथ व्यवहार करते तो, हमें छोटों की उच्छृखलता का भोग न होना पड़ता। ____सच पूछा जाय तो, उच्छृखलता का जहर न केवल विद्या. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035233
Book TitleSamayik Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year1953
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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