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________________ ( ६९ ) हमारे मन, वचन और काया की प्रवृत्तियों में जो सादगी थी, विनय और विवेक था, उसका स्थान साहबी ठाठ ने ले लिया और उस साहबी ठाठ के अभिमान में उछृङ्खलता आई। अनुभवी लोगों को मालूम है कि हमारे देश की प्राचीन प्रणाली के अनुसार धार्मिक भावना-और रहन सहन रखने वाले, चाहे वह विद्यार्थी हो चाहे शिक्षक, चाहे अधिकारी हो चाहे व्यापारी, लेकिन उसमें हम उतनी उछृङ्खलता हम नहीं पायेंगे, जितनी साहबी ठाठ बाट में रहने वाले विद्यार्थी, शिक्षक और अधिकारी में प्रायः पाई जाती है । इस प्रकार शासन के अधिकार में चलने वाली शिक्षण संस्थाओं की अपेक्षा प्राचीन अर्वाचीन पद्धति पूर्वक गुरुकुल, आश्रम आदि संस्थाओं में उछृङ्खलता बहुत कम पाई जाती है । ४-पिछले वर्षों की राजनीति ने भी कुछ उछृङ्खलता की मात्रा हमारे देश में अधिक बढ़ाई है, ऐसा मेरा नम्र मत है। हमारे देश की राजनीति में परिवर्तन जब से होने लगा तब से उस परिवर्तन का मूलाधार पाश्चात्य राजनीति के अनुकरण करने में रखा गया । परिणाम यह पाया कि, राजनीति राज्याधिकारियों में किंवा उससे सम्बन्धित जनों में ही नहीं रही, किन्तु सर्वव्यापी हो गई । चाहे विद्यार्थी हो, चाहे शिक्षक हो चाहे साधु हो अथवा गृहस्थ हो, चाहे स्त्री हो चाहे पुरुष हो, चाहे व्यापारी हो चाहे किसान हो, सभी में राजनीति में भाग लेना चाहिये, ऐसी भावना एक अथवा दूसरे कारणों से मिल गई। परिणाम यह हुआ कि जिन लोगों को अभी जीवन-विकास करने का था, अभी शक्तियां प्राप्त करने की थी, अभी फूल के समान थे, वे भी अपने अपने कर्तव्यों से हाथ धोकर, पके पकाये फलों की तरह, राजनीति के क्षेत्र में टपाटप टूट पड़े। हुआ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035233
Book TitleSamayik Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year1953
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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