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________________ मानव और मांसाहार संसार के भिन्न भिन्न प्रकार के प्राणियों में मानव का स्थान ऊंचा है इसलिये कि उसमें मानवता है, विचारशक्ति है, दया है, दाक्षिण्य प्रेम है, हमदर्दी है यही कारण है कि वह स्वभावतः अत्याचार को सहन नहीं कर सकता। स्वार्थी, लोभी होने के कारण वह अपने धर्मों को भूल जाता है, किन्तु फिर भी बड़ा जीव छोटे पर अत्याचार करता होगा, शक्तिशाली शक्तिहीन को सताता होगा तो वह सहन नहीं करेगा | उसको बचाने का अवश्य प्रयत्न करेगा । 1 " इसी प्रकार मानव के शरीर की रचना भी इस प्रकार की हुई, वह अपने शरीर से किसी भी जीव को कष्ट न दे । अर्थात बुद्धि, विचार शक्ति और शरीर रचना ये तीनों मानव को इस प्रकार के मिले हैं कि वह किसी को भी कष्ट न दे और न वह स्वयं पापी बने । मिली हुई चीजों का दुरुपयोग करके वह चाहे कुछ करले और वह दुरुपयोग करता है केवल स्वार्थ और लोभ के कारण से | किन्तु प्रकृति द्वारा मानव को दी हुई शक्तियों और शरीर रचना आदि पर ध्यान रखते हुए वह अपना जीवनयापन करे तो वह नर का नारायण बन सकता है । मानव जाति के लिये, अपने खुद के लिये जो विचार सीय प्रश्न हैं, उनमें माँसाहार का भी एक प्रश्न है । क्या मांस मनुष्य की स्वाभाविक खुराक है ? मानव जाति के लिए यह प्रश्न उठाना ही लज्जास्पद बात है । मानव के, प्राचीन इतिहास को Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035233
Book TitleSamayik Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year1953
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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