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(९० ) उमे छोड़ना मुश्किल हो गया है। जब बड़े-बड़े लोगों की यह दशा है, तब फिर इन विद्यार्थियों की तो बात ही क्या कहैं ? ___ कहने का तात्पर्य यह है कि उचित या अनुचित किमी भी प्रकार से जो बातें भली या बुरी हम एक दूसरे में देखते हैं, वे किसी न किसी का दन है। इसलिये मेरा नम्र मत है कि हमारे लाखों करोड़ों बालक-बालिकाओं, युवक-युवतियों का 'चरित्रनिर्माण करना है तो हमारे वर्तमान ढाचे को आमूल परिवर्तन करना होगा। भले ही इसके लिए ममय लगे, भले ही उसके लिए कितना हो स्वार्थत्याग करना पड़े। ___ यह कार्य इसलिये भी अधिक कठन मालूम होता है कि चारों आश्रमों की श्रेष्ठता का मूल कारण जो गृहस्थाश्रम है, वही इस ममय प्रायः छिन्न-भिन्न और पतित हो गया है। ऐसे प्रसंस्वाग, झूठ और प्रपञ्च में ओत-प्रोत, जिनमें ईमानदारी का नामो निशान नहीं, अन्याय के द्रव्य से उदर पोषण करने वाले, गृहस्थाश्रम के नियमों का पालन न करने वाले, बालक को जन्म देने के अतिरिक्त, उनके प्रति अपना कर्तव्य नहीं सममने वाले, भाषा शुद्धि को भी न समझने वाले माता-पिताओं ने छः सात वर्षों की उम्र तक अपने बालकों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष जो बुरे संस्कार डाले हैं-डालते हैं, उन्हें मिटाकर नवीन संस्कार
और नया ही आदर्श चरित्र-निर्माण हमें करना है। इसलिए भी मैं यह कार्य अधिक कठिन समझता हूँ।
कुछ भी हो, मानव जाति के लिए कोई कार्य अशक्य नहीं है। साहस, दृढ़ प्रतिज्ञा, निरन्तर परिश्रम और धैर्य-पूर्वक किया हुश्रा प्रयत्न कभी निष्फल नहीं हो सकता। साठ माठ वर्षों की घोर तपस्या ने भारत को स्वतन्त्रता प्राप्त कराई। पिछले तीन वर्षों में भी जो कुछ हुआ है, वस्तुतः देखा जाय तो कम नहीं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com