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'मास्टर', 'मोनीटर', हों चाहे न हों, हमारा प्रत्येक छात्र सच्चा नागरिक और हमारी प्रत्येक बहन सच्ची मातादेवी बननी चाहिए। जिन महानुभावों पर हमारे इन भावी उद्धारकों के, देवियों के जीवन-निर्माण की, सञ्ची नागरिकता की जबाबदारी है, उनको बहुत गम्भीरता पूर्वक, सोच-समझ करके एक नवीन शिक्षण के क्षेत्र का निर्माण करने की श्राश्यकता है। मैं यह समझता हूँ कि यह कार्य अति कठिन है । सहमा परिवर्तन करने लायक वस्तु नहीं है। क्योंकि सदियों से हमारे जीवन के अणुअणु में विष व्याप्त हो गया है । हमें काया कञ्चन जैसी बनानी है किन्तु जब तक इस विष का नाश न हो, तब तक कायापलट का कोई भी प्रयोग सफल नहीं हो सकता। हमारे विष की यह परम्परा लम्बे समय से-पीढ़ियों से चली आई है। कोई भली अथवा बुरी प्रवृति इसी प्रकार परम्परा में चली आती है। माज हमारे विद्यार्थियों, युवकों, युवतियों में कुछ बुराइयाँ कुछ लोग देख रहे हैं । वे हमारी खुद की देन हैं, यह हम भूल जाते हैं । सासू को सताने वाली बहू यह भूल जाती है कि “मैं भी कल सासू होने वाली हूं। मैं अपनी सासू को नहीं सता रही हूं, किन्तु अपनी बहू को सताने की विद्या सिखा रही हूं।" मानव अनुकरण करने वाला प्राणी है। वह यह नहीं देखता है कि यह जो कुछ कर रहा है, वह किस लिए कर रहा है। वह तो यही देखता है कि यह ऐसा करता है, इमलिए मुझे भी ऐसा ही करना चाहिए । पाश्चात्य संस्कृति को हमारे जिन देशवासियों ने अपना लिया है, उन्होंने कब सोचा था कि यह वेश, यह खान-पान, यह रहन-सहन उस देश के लिए उपयोगी हो सकती है, हमारे लिए नहीं ? फिर भी शौक से, मित्रों को राजी करने के लिए, अपना महत्व दिखलाने के लिये या किसी भी कारण से, पश्चिम की बातों को स्वीकार कर लिया । यहां तक कि आज Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com