SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५६ समरसिंह। सलक्षण-" सार्थवाह ! मैं आपका असीम उपकार मानता हूँ कि आपने ऐसे उत्तम नगरका मुझे विशेष परिचय कराया। अब मैं उस नगर को देखनेके लिये परम उत्सुक हूँ। मैं कुछ भी विलम्ब नहीं करूँगा । और आपके साथ चलना तो मेरे लिये और भी अधिक उपयुक्त होगा।" इस प्रकार कह कर सलक्षणने पल्हनपुर जाने के लिये तैयारी की । यात्रा के लिये आवश्यक सामग्री एकत्रित की गई । जब सलक्षण रवाने हुए तो रास्ते में कई शुभ शकुन हुए। इससे श्रेष्टिवर्य का उत्साह और भी परिवर्धित हुआ। निर्विघ्नतया यात्रा समाप्त कर जब सलक्षण पल्हनपुर नगरमें प्रविष्ट हुए तो पुनः शुभ शकुन दृष्टिगोचर हुए जो भावी मंगल लाभ की सूचना दे रहे थे । प्रसन्नचित्त सलक्षण को शकुनों के फलस्वरूप नगरमें जाते ही श्री पार्श्वनाथ भगवान की रथयात्रीके वरघोड़े के दर्शन हुए । सलक्षणने वरघोड़े में सम्मिलित होकर सारे नगर के जिनालयों के दर्शन करने का प्रथम लाभ लिया। उस समय एक सामुद्रिक विद्याका विशेषज्ञ श्रेष्टिवर्य के चहरे को देखकर भविष्यवाणी कहता है कि यदि आप इस नगर में आ बसेंगे तो आपको धन, धान्य, पुत्र और सुख की प्राप्ति होगी। आपके वंशज संघ-नायक होंगे। आपकी संतान धर्मिष्ट १ तदन्तर्विशतस्तस्य बीवामेयजिनेशितुः । रथः संभुखमायातः ससथेऽथ पुवेऽभ्रमत् ॥ ७६ ॥ (ना० नं० ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035229
Book TitleSamarsinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy