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श्रेष्टिगोत्र और समरसिंह।
भाप ध्यान लगाके सुनिये गुर्जरभूमि में प्रवेश होते ही गुर्जरभूमि
और मरुभूमि की सीमा जहाँ मिलती है वहाँ एक अत्यंत मनोहर स्वर्गसे भी बढ़कर नगर है जिसका नाम पल्हनपुर है । उस नगर में परम रम्य पार्श्वनाथ-जिनालय है जिसके कलश, ध्वजदंड और कंगुरे सुवर्ण के तो है ही पर उनमें विशेषता यह है कि वे अमूल्य जवाहरात से जड़े हुए हैं। आरती के समय झालरोंकी मनझनाहट की गर्जना की तुमूल ध्वनि चहुँ दिशा में प्रसारित होकर कलिकालरूपी शत्रुको पलायमान करती हुई दिखती है। वह नगर व्यापार का बहुत बड़ा केन्द्र है अतः वहाँ भिन्न भिन्न मतों के लोग अधिक संख्या में रहते हैं पर खूबी यह है कि उनमें परस्पर किसी भी प्रकार का द्वेष या बैरभाव नहीं है । सब अपने अपने धार्मिक कर्तव्यों को पालने में स्वतंत्रतया निरत हैं। सब से अधिक संख्यावाले जैनी हैं। जिनशासनके अभ्युदयकी सर्वोच्च स्थिति इस नगरमें विद्यमान है । जिस प्रकार रोहिणाचल अनेक मणियों से विभूषित है उसी प्रकार यहाँ का जैन संघ भी अनेक योग्य अप्रेसरों से शोभित है । महानुभाव ! कृपया आप एक बार पधारकर उस नगर का निरीक्षण अवश्य करिये। 'अवसि देखिये देखन योगू।' १ प्रल्हादनविहाराख्यं श्रीवामेयजिनेशितुः । विद्यते मंदिरं यत्र सुरमन्दिर सुन्दरम् ॥ ६१॥ सद्वालानकमर्घस्थ सुवर्ण कपि शीर्षकैः । माबद्धशेखरमिवामाति देवगृहेषु यत् ॥ ६२ ॥
१ नाभिनन्दनोद्धार. सौवर्णदण्डकलथा-मलसारक कान्तिभिः । प्रातलोंका हतालोकं यदूर्व नेक्षितुं क्षमाः ॥ ६३ ॥
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