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________________ श्रेष्ठगोत्र और समरसिंह । ५१ था किन्तु वह परम गुणी होने के कारण सहस्रों के बराबर था । कहा भी है कि वरमेको गुणी पुत्रो न च मूर्ख शतान्यपि । एकश्चन्द्रस्तमो हन्ति न च तारागणोऽपि च । बेसट अपनी अंतिम समाधि की क्रिया कर सात क्षेत्रों में अपनी सारी सम्पत्ति अर्पण कर गृहकायों का भार वर देव को सोंप अनशनपूर्वक स्वर्गधाम को सिधाये । सुयोग्य पुत्र वरदेवने भी अपने सदाचरण द्वारा अपन पिता की कीर्ति को द्विगुणित किया । उसकी भी श्रद्धा देवगुरु धर्म और शासन के प्रति वैसी ही थी । साधर्मियों और जन साधारण की ओर भी तादृशी सहानुभूति और वात्सल्यता विद्यमान थी । राज्य कार्य में तो उसका हस्तक्षेप था ही परन्तु व्यापार आदि में उसने और भी अधिक वृद्धि कर दिखाई | वरदेव के एक पुत्र हुआ जिसका नाम जिनदेव था । जो जिनेश्वर के चरणों में अविरल भक्ति रखनेवाला तथा प्रखर बुद्धिमान था । वरदेवने भी अपना द्रव्य सातों क्षेत्रों में अपर्ण कर घर का भार जिनदेव को सुपूर्द कर अनशनपूर्वक स्वर्गघाम प्राप्त किया । जिनदेव का पुत्र नागेन्द्र तो साक्षात् सहस्र नाग की तरह जगत का उद्धार करनेवाला अवतरित हुआ था । उसे विपुल लक्ष्मी और अक्षय कीर्ति प्राप्त हुई थी । इसके द्वारपर जो 1 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035229
Book TitleSamarsinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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