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________________ श्रेष्टिगोत्र और समरसिंह । साक्षात परिचय देता था। राज्य के कार्य की व्यवस्था ऐसी सुसंगठित थी कि सारी प्रजा अपने नृपति में अटूट श्रद्धा रखती थी तथा जेत्रसिंह भी प्रजा को पुत्रवत् समझ कर सबके साथ वैसा ही व्यवहार करता था। वेसट श्रेष्ठि राज्य सभा में भेंट लेकर प्रविष्ट हुए । राजा के सम्मुख भेंट रखते हुए आपने अभिवादन के पश्चात् इस प्रकार रोचक वार्तालाप किया । राजा-" भापका शुभनाम क्या है ? और आप कहां से पधारे है ?" सेठ- मेरा नाम वेसट है और मैं उपकेशपुर से आया हूं।" राजा-" आपका यहां आना किस प्रयोजन से हुआ?" सेठ--" आपके सुन्याय की धवलकीर्ते सारे विश्व में प्रख्यात है जिस से आकर्षित होकर मैं यहां आया हूं। मेरी हार्दिक इच्छा है कि मैं यहाँ पाप की छत्र छाया में निवास करूं इसके अतिरिक्त मेरा कोई प्रयोजन नहीं है।" राजा-" सेठजी, यह बहुत हर्ष की बात है कि आप आगए । जिस प्रकार राजहंस के निवास से सरोवर की शोभा बढ़ती है इसी प्रकार आप से श्रेष्ठ श्रेष्ठि वंशियों के निवास करने से मेरे नगर की भी शोभा अवश्य परिवति होगी। आप Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035229
Book TitleSamarsinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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