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समरसिंह
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मन्दिर की भी स्थापना ( प्रतिष्ठा ) आपने करवाई । इन के पश्चात् भी कई आचायोंने महाजन संघ के रक्षण और पोषण में अनवरत प्रयत्न किया । निरन्तर आचार्यों की संरक्षता में ' महाजन संघ ' की वृद्धि होती रही ।
कालान्तर से उस महाजन वंश का नाम ' उपकेश नगर के ' कारण से उपकेश वंश प्रसिद्ध हुआ । इसी प्रकार उपकेश वंश के प्रतिबोधक - पोषक और उपदेशक आचार्यों के गच्छ का नाम भी उपकेश गच्छ मशहूर हुआ । उपकेश वंश की प्रख्याति सब प्रान्तों में क्रमशः फैल गई । उपकेश वंश के नेताओं की विशाल हृदयता और उदारता आदि का आशातीत प्रभाव जैनेतरों पर पड़ा जिस के परिणाम स्वरूप जनता अधिक संख्या में इस वंश को अपनाने लगी । लोग महाजन संघ में सम्मिलित होने लगे । 1 उपकेशपुर की जन संख्या में भी खूब वृद्धि हुई । जन संख्या की वृद्धि के साथ साथ इस नगर के व्यापार की भी बढ़ती खूब हुई | उपकेशपुर व्यापारिक केन्द्र हो गया । जो लोग व्यापार के लिये अन्य प्रान्तों से उपकेशपुर आते थे उन पर भी उस नगर के निवासियों के रहन सहन और आचार व्यवहार का कुछ कम प्रभाव नहीं पड़ता था । अनेक लोग इसी रीति से व्यापार
१ सप्तत्या (७०) वत्सराणं चरम जिनपतेर्मुक्त जातस्य वर्षेः । पंचम्यां शुक्लाक्षे सुरगुरु दिवसे ब्रह्मण सन्मुहूर्ते ॥ रत्नाचर्यैः सकल गुण युकैः सर्व संघानु ज्ञातैः । श्रीमद्वीरस्य बिम्बे भव शत पथने निर्मितेयं प्रतिष्टाः ॥ १
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( उप- गच्छ० चरित्र )
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