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________________ युंजय तीर्थ । यवनशाही की सत्ताने कुछ का कुछ कर दिया । आक्रमणकारियों की क्रूर दृष्टि हिन्दू और जैनियों के शास्त्र भण्डारों और तीथों पर विशेषरूप से वापात कर रही थी । ऐसी दशा में शास्त्रों और तीयों को सुरक्षित रखना सचमुच टेढ़ी खीर थी । अत्याचारियों के कुतूहत में हमारी गाढ़े पसीने की तैयार की हुई साहित्य सामग्री नष्ट हो रही थी । तीथों और ग्रन्थ भण्डारों पर आफत की बिजली चमक रही थी । इस अत्याचार और अनाचार के परिणाम स्वरूप सारे गुजरात प्रान्त में ठौर ठौर त्राहि त्राहि की 'आवाज सुनाई देती थी । ૨૫ जब गुजरात के कौने कौने में यवनों के उपद्रव हो रहे थे तो यह कब सम्भव था कि यवनों की दृष्टि श्री शत्रुंजय जैसे महत्वशाली धार्मिक पुनीत गिरिपर नहीं पड़ती । शत्रुंजयगिरिपर धावा बोलने के लिये यवनों ने विशेषरूपसे तैयारी की । तीर्थ की महता सुनकर उनके हृदय में कुछ आशंका भी उत्पन्न हो गई थी । अल्लाउदीन खिलजी की फौज चढ़ कर भाई और लगी तीर्थाधिराज पर आक्रमण करने । यवनों ने भी ध्वंस करने में कुछ कमी नहीं रखी । दुष्ट लोग जिस घात में बहुत दिनों से टकटकी लगाये बैठे थे इस अवसर को पाकर अपनी मनोच्छित बातों को पूर्ण करने लगे । । आक्रमणकारियोंने मूलनायकजी की प्रतिमा पर धावा बोल दिया । निज मन्दिर को गिराया तथा उसके अतिरिक्त आसपास के मन्दिरों को भी नष्ट करने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035229
Book TitleSamarsinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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