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समरसिंह । जैसे प्रबल पराक्रमी इस तीर्थ के उद्धारक हो चुके हैं जिसके प्रमाण जैनशास्त्रों में स्पष्टतया मिल सकते हैं। आधुनिक समय में यद्यपि ये महापुरुष अनैतिहासिक समझे जाते हैं पर जैसे जैसे इतिहास की सोध और अनुसंधान होते जावेंगे वैसे वैसे इस विषय पर भी प्रकाश पड़ता जायगा । जिन महापुरुषों के नाम निशान तक हम नहीं जानते थे, इतिहास की आधुनिक खोज से, उन महापुरुषों के नाम आज विश्वविख्यात हो रहे हैं। जैनशास्त्रों में प्रमाणिक पुरुषों द्वारा लिखे हुए व्यक्ति यदि इतिहास सिद्ध हो सर्वोच्च स्थान प्राप्त करें तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं हो सकती यदि आगे चलकर हम ऐतिहासिक युग की ओर दृष्टिपात करते हैं तो इस पवित्र तीर्थ के उपासकों और उद्धारकों की महता और प्रभुता के इतने प्रमाण मिलते हैं कि यदि उन सब प्रमाणों को संग्रहित कर इस जगह लिखा जाय तो वे प्रमाण ही एक स्वतंत्र ग्रंथ की सामग्री के बराबर हो जाय और यह बात वास्तव में है भी ठीक । क्योंकि मरूभूमि के नरेश उपलदेवे, सिन्ध सम्राट महाराजा रुद्रादै, भारत सम्राट श्री चन्द्रगुप्त मौर्य, त्रिखण्ड शिलादित्य स्तथा जावडिः । मन्त्रीवाग्भटदेव इत्यभिहिताः शत्रुजयोद्धारिण-स्तेषामचलतामियेष सुकृतीयः सद्गुणालङ्कृतः ॥'
बालचन्द्ररिकृत पसंतविलास (गा. ओ. सीरीज से प्रकाशित) के सर्ग १४, श्लो० २३ ।
१ महामेघवाहन खारवेल और कनिष्क वगेरह । २ उपकेश गच्छ पट्टावली देखिये । . ३ जैन जाति महोदय प्रथम खंड के पांचवे प्रकरणको पढ़िये ।
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