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________________ ( २५२) जैन सिद्धान्त के दो अमूल्य रत्न । कर्मग्रंथ सरल हिन्दी अनुवाद सहित ( अनुवादक - श्री मेघराजजी मुनोहित-फलोधी ) । जैन धर्मकी कर्म फिलासफी बहुत प्रमाणिक और तथ्य है । आचार्य देवेन्द्रसूरिने इस मूल ग्रंथको ऐसी खूबीसे बनाया कि सारा संसार उनकी तारीफ करता है । ऐसे उपयोगी ग्रंथको हिन्दीके सरल अनुवाद सहित प्रकाशित करके रत्नज्ञान प्रभाकर पुष्पमालाने जैन साहित्यकी अच्छी सेवा की है । प्रत्येक धर्मप्रेमीसे अनुरोध है कि इस ग्रंथकी एक प्रति मंगाकर अवश्य पढ़े इस पुस्तकमें कर्म प्रकृतियों के स्वरूप, कर्मबंधनेके हेतु, स्वरूप स्थिति अनुभाग आदि प्रादि बहुत रोचक ढंगसे लिखे गये हैं । प्राध्यात्मिक विषयको सरलतासे समझाने के उद्देशसे ज़रूरी ज़रुरी यंत्र भी दियेगये है पृष्ट संख्या १२० । न्योछावर चार आना मात्र १ नयचक्रसार सरल हिन्दी अनुवाद सहित (अनुवादक-श्री० मेघरानजो मुनोहित-फकोषी ) इस ग्रंथमें देवचन्द्रजी महाराजने षद्रव्य और स्याद्वादके स्वरूपका प्रतिपादन प्रति सुबोध ढंगसे किया है । इस छोटेसे ग्रंथमें न्यायप्रियता के साथ अन्य दर्शनियोका निराकरण करते हुए जैन सिद्धान्तों और तत्वोंका समुचित विवेचन किया गया है। यह तर्क विषय ग्रंथ प्रतीव उपयोगी समझकर अति सरल हिन्दी भाषामें मूल सहित प्रकाशित किया गया है। पृष्ठ संख्या १४४ न्योछावर सिर्फ छ भाने । एक प्रति प्रत्के धर्मप्रेमी के पास होना ज़रूरी है। इस पतेसे आज ही मंगवालीजियेजैन ऐतिहासिक ज्ञान भंडार-जोधपुर । www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
SR No.035229
Book TitleSamarsinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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