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________________ . ( २५१) जैन आगमोंका मक्खन । शीघ्रबोध-२५ भाग [ लेखक-मुनिवर्य को ज्ञानसुन्दरजी महारान ] जैनधर्मके सिद्धान्त और तत्व आज सारी दुनिया में प्रसिद्ध और प्रशंसनीय हैं । परन्तु सारा साहित्य सूत्र रूपमें है जो सिर्फ बड़े धुरंघर पंडितोंसे ही पढ़ा जासकता है। उन महा उपयोगी सूत्रोंके लाभसे वंचित रहनेवाली साधारण जनता के लिये मुनिश्री ज्ञानसुन्दरजी महाराजने बड़ी भारी महनत करके सूत्रोंका अर्थ ऐसी सरल भाषामें दिया है कि मामूली पढ़ा लिखा मनुष्य भी बहुत आसानी से समझ सकता है। अगर आपको जैन आगमोंका सार आसानीमे चखना है । अगर आपको गागरमें सागर भरना है तो जरूर इस ग्रंथको मंगा. कर अपने घरको पवित्र और शोभायमान कीजिये । इस एक ग्रंथमें दुनियामरके तत्वज्ञानका निचोड है। जैनधर्म के जिज्ञासु बालकों और खियोंके लिये तो यह ग्रंथ एक सरल पथप्रदर्शक है। कई साधु साध्वियोंने इसकी उपयोगिताको स्वीकार किया है। ऐसा कोई भी जैन घर या पुस्तकालय नहीं रहना चाहिये जिसमें यह उपयोगी पंथ ९ हो मूल्य भी सिर्फ ९) रखागया है। अब बहुत ही थोड़े सेट रहगये है अतः अगर मापने अबतक इस ग्रंथको नहीं देखाहो तो जरूर भार्डर देकर वी. पी. द्वारा इस ठिकानेसे मंगालीजिये जैन ऐतिहासिक ज्ञानभंडार-जोधपुर । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035229
Book TitleSamarsinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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