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________________ पजिउ पान मार दोनयपरिसरे। समाधि सप्तमी भाषा संघिहिं चउरा दीन्हा तहिं नयरपरिसरे । अलजउ अंगि न माए दीठउ विमलगिरे । पूजिउ परवतराउ पणमिउ बहुभचिहिं । देसलु देयए दाणे मागणजणपतिहिं ॥१॥ अजियजिणिंदजुहारो मनरंगि करेवि । पणमइ सेत्रुजसिहरो सामिउ सुमरेवि ॥ २॥ पालीताणइ नयरे संघ भयलि प्रवेसु । खलितसरोवरतीरे किउ संघनिवेसु । कजसहाय लहुभाय लहु आवियउ मिलेवि ॥ ३॥ सहजउ साहणु तीहि त्रिन्हह गंगप्रवाह । पासु अनइ जिण वीरो वदिउ सरतीरिहि । पंषि करह जलकेलि सरु भरिउ बहुनीरिहिं ॥४॥ सेत्रुजसिहरि चडेवि संघु सामि ऊमाहिउ । मुललितजिणगुणगीते जगदेहु रोमंचिउ । सीयलो वायए वाभो भवदाहु मोन्हावए । माडीय नमिय मरदेवि संतिभुवणि संघु जाए ॥५॥ जिगविइ पूजेवी कवडिजक्खु जुहारए । अणुपमसरतहि होई पता सीहदुवारे । तोरणतलि वरसते पणदाणि संघपते । मेटिउ आदिजगनाहो मंडित पत्रीठमहडवो ॥ ६ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035229
Book TitleSamarsinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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