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________________ २१८ समरसिंह खारवाड़े में सीमंधरस्वामी के जिनालय में है। ( बुद्धि० भाग २ रा ले. नं० १०७६) । वि. सं. १४०१ में प्रतिष्ठित शांतिजिन बिंब बालोतरा (मारवाड़) में शीतलनाथजी के मन्दिर में है (देखगे--पूरणचन्द्रजी नाहर के लेखसंग्रह के लेख नं० ७२९ ) वि. सं. १४०५ में प्रतिष्ठित ऋषभजिन बिंब जयपुर के बेपारी के पास है ( देखोः- पूरणन्द्रजी नाहर के लेख संग्रहके लेख ० नं. ४००) देवगुप्त सूरि प्रस्तुत प्राचार्य ककसूरि के शिष्य देवगुप्तसूरिद्वारा वि. सं. १४१४, १४२२, १४३२, १४३९, १४५२, १४६८ और १४७१ में प्रतिष्ठित जिन-मूर्तियों देखने में आती हैं । इन में से सं. १४१४ का लेख ऊपर दिखाया गया है । सं. १४३२ में, प्रतिष्ठित आदिनाथ भगवान की मूर्ति हमारे चरितनायक के पुत्र दूंगरसिंह की भार्या दुलहदेवीने साधु समरसिंह के श्रेय के अर्थ बनवाई थी। ( बुद्धि० भाग २ ले० नं. ६३५) वि. सं. १४९२ में प्रतिष्ठित संघद्वारा कराई हुई उपर्युक आचार्य ककरि की पाषाणमयी मूर्ति पाटण में पंचासरा पार्श्वनाथस्वामी के मन्दिर के एक गवाक्ष में है। (जिन वि. भा० २ रा ले० नं. ५२६) वि. सं. १४६८ में प्रतिष्ठित मादिनाथ प्रमुख चतुर्विशति Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035229
Book TitleSamarsinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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