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________________ ऐतिहासिक प्रमाण. ૨૨૭ संग्रह भाग २ रा लेख नं ५५३ ) यह मूर्ति उपर्युक्त सिद्धसूरि की ही होने का अनुमान है। ककसरि वि. सं. १३८३ में उपर्युक्त नाभिनंदनोद्धार प्रबंध के रचयिता कक्कसूरिद्वारा प्रतिष्ठित जिन प्रतिमाऐं: वि. सं १३७८ में प्रतिष्टा कराई हुई आदिनाथ की मूर्ति भर्बुदगिरि पर विमल वसही ' में विद्यमान है। (देखो-जिनविजय० लेख. भाग २ रा लेख नं. ३१२ ) वि. सं. १३८० में प्रतिष्ठित देसलशाह के संतानवालों से कराया हुआ चतुर्विशतिपट्ट खंभात के श्री चिंतामणिजी पार्श्वनाथ भगवान के मन्दिर में विद्यमान है । ( देखो बुद्धि० ले० भाग २ रा लेख नं. ५३१) वि. सं. १३८० में प्रतिष्ठित शांविनाथ विंब पेथापुर के पावन जिनालय में मौजूद है ( देखो बुद्धि० भाग २ रा लेख नं. ७११-७०६ पुनरावृचि है) वि. सं. १३८७ में प्रतिष्ठित भक्तिनाथ बिंब बड़ौदे में जानीगली में चंद्रप्रभ जिनालय में है । (बुद्धि० ले० भाग २ रा ले. नं. १४३) वि. सं. १९०० में प्रतिष्ठित देसलशाह के पुत्र सहजपाल की धर्मपत्नी नयणदेवी का कराया हुआ समवसरण खंभात, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035229
Book TitleSamarsinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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