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ऐतिहासिक प्रमाण.
सिद्धसरि वि. सं. १३७१ में शत्रुजय के मूलनायक भार्दश्विर भगवान की मूर्ति की प्रतिष्ठा करनेवाले उपकेशगच्छ के आचार्य सिद्धसूरि से वि.सं. १३५६ में तथा वि. सं. १३७३ में प्रतिष्ठित
करने में कोई कमी नहीं रखी । वह इसी कार्य में सदैव तत्पर रहता था। गुरुकृपा से यह ऊँचे ऊँचे शिखरवाले २५ देवालय बनवाने में समर्थ हुआ था । इस के अतिरिक्त सिद्धगिरि का संघ भी निकाला जिस से इसने स्वयं और भी कई जगहों की यात्रा की तथा दूसरे लोगों को भी यात्रा करवाकर घपति की वंश परम्परा से आती हुई पदवी को प्राप्त किया। । तीसरे पुत्रका नाम इंगरशाह था । जिस की चतुराई से दिशीधर आदशाह इस से परमप्रसन्न था और बादशाहपर इसका प्रभाव भी कम नहीं
। यही कारण था कि वह कई धर्म कार्य निर्विघ्नतया करने में समर्थ श्रा था ।
चतुर्य पुत्र का नाम सालिगशाह था। इन की वीरता विश्वविख्यात वी तः आप 'शरशिरोमणि' नामक विरुद से लोक प्रसिद्ध थे। आप लोक मान्य तो ये ही । नवीन मन्दिर बनवाने की अपेक्षा आपने जीर्णोद्धार के कार्य को करना ही अधिक उचित और उपयोगी समझा अतः आपने यही कार्य प्राधिकांश में किया ।
___ पंचम पुत्रका नाम स्वर्णपाल था । इन का यश प्रस्तारित और उपोग डांसनीय था । इन्होंने ४२ जिनालय बना श्रीशजय का संघ निकाल तीर्थ पात्रा का लाभ उपार्जन कर विश्वभर में ख्याति प्राप्त की । । छठे पुत्र का नाम सजनसिंह था । जो महान् प्रतापी और जिनशासन की अतुल प्रभावना करनेवाले थे । इन्होंने वि० सं० १४२४ में पुनीत तीर्व
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